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लेखक: [[भवानीप्रसाद मिश्र]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र]]}}{{KKCatKavita}}<poem>आराम से भाई ज़िन्दगीज़रा आराम सेतेज़ी तुम्हारे प्यार की बर्दाशत नहीं होती अबइतना कसकर किया आलिंगनज़रा ज़्यादा है जर्जर इस शरीर को
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*आराम से भाई ज़िन्दगीज़रा आराम सेतुम्हारे साथ-साथ दौड़ता नहीं फिर सकता अब मैंऊँची-नीची घाटियों पहाड़ियों तो क्यामहल-अटारियों पर भी
आराम से भाई ज़िन्दगी<br>न रात-भर नौका विहार न खुलकर बात-भर हँसनाज़रा आराम से<br>तेज़ी तुम्हारे प्यार की बर्दाशत नहीं होती अब<br>इतना कसकर किया आलिंगन<br>ज़रा ज़्यादा है जर्जर इस शरीर को<br><br>बतिया सकता हूँ हौले-हल्के बिल्कुल ही पास बैठकर
आराम से भाई ज़िन्दगी<br>ज़रा आराम से<br>तुम्हारे साथ-साथ दौड़ता नहीं फिर सकता अब मैं<br>ऊँची-नीची घाटियों पहाड़ियों और तुम चाहो तो क्या<br>बहला सकती हो मुझेमहल-अटारियों पर भी<br><br>जब तक अँधेरा है तब तक सब्ज़ बाग दिखलाकर
न रात-भर नौका विहार न खुलकर बात-भर हँसना<br>जो हो जाएँगे राखबतिया सकता हूँ हौले-हल्के बिल्कुल ही पास बैठकर<br><br>छूकर सवेरे की किरन
और तुम चाहो तो बहला सकती हो मुझे<br>जब तक अँधेरा है तब तक सब्ज़ बाग दिखलाकर<br><br> जो हो जाएँगे राख<br>छूकर सवेरे की किरन<br><br> सुबह हुए जाना है मुझे<br>आराम से भाई ज़िन्दगी<br>ज़रा आराम से ।<br><br>
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