लेखक: [[भवानीप्रसाद मिश्र]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र]]}}{{KKCatKavita}}<poem>मेरे बहुत पासमृत्यु का सुवासदेह पर उस का स्पर्शमधुर ही कहूँगाउस का स्वर कानों मेंभीतर मगर प्राणों मेंजीवन की लयतरंगित और उद्दामकिनारों में काम के बँधाप्रवाह नाम का
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~एक दृश्य सुबह काएक दृश्य शाम कादोनों में क्षितिज परसूरज की लाली
मेरे बहुत पास<br>मृत्यु का सुवास<br>देह दोनों में धरती पर उस का स्पर्श<br>मधुर ही कहूँगा<br>छाया घनी और लम्बीउस का स्वर कानों में<br>इमारतों की वृक्षों कीभीतर मगर प्राणों में<br>जीवन देहों की लय<br>तरंगित और उद्दाम<br>किनारों में काम के बँधा<br>प्रवाह नाम का<br><br>काली
एक दृश्य सुबह का<br>दोनों में कतारें पंछियों कीएक दृश्य शाम का<br>चुप और चहकती हुईदोनों में क्षितिज पर<br>सूरज राशियाँ फूलों की लाली<br><br>कम-ज्यादा महकती हुई
दोनों में धरती पर<br>छाया घनी और लम्बी<br>इमारतों एक तरह की वृक्षों की<br>शान्तिदेहों की काली<br><br>एक तरह का आवेगआँखें बन्द प्राण खुले हुए
दोनों में कतारें पंछियों की<br>अस्पष्ट मगर धुले हुऐचुप और चहकती हुई<br>कितने आमन्त्रणदोनों में राशियाँ फूलों की<br>बाहर के भीतर केकम-ज्यादा महकती हुई<br><br>कितने अदम्य इरादेकितने उलझे कितने सादे
दोनों में<br>एक तरह की शान्ति<br>एक तरह का आवेग<br>आँखें बन्द प्राण खुले हुए<br><br> अस्पष्ट मगर धुले हुऐ<br>कितने आमन्त्रण<br>बाहर के भीतर के<br>कितने अदम्य इरादे<br>कितने उलझे कितने सादे<br><br> अच्छा अनुभव है<br>मृत्यु मानो<br>हाहाकार नहीं है<br>कलरव है!<br><br>