|संग्रह=उचटी हुई नींद / नीरज दइया
}}
{{KKCatKavita}}<poem>गुड़िया-सी थीजिस गुडिय़ा से था एक लड़कीप्यार बचपन मेंवह कितना निष्पाप था
बनी वहउसे दिन-रात चूमना एक औरतबार-बार गले लगानाऔरकितना बेदाग था जन्म दियाएक गुड़िया कोअब पाप में दाग गिन भी नहीं पाता!
अब फिर
गुड़िया एक लड़की है
उसे भी
बनना ही होगा औरत
फिर ……
</poem>