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गुड़िया-1 / नीरज दइया

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=नीरज दइया |संग्रह=उचटी हुई नींद / नीरज दइया}}{{KKCatKavita‎}}<poem>गुड़िया-सी थीजिस गुडिय़ा से था प्यार बचपन मेंएक लड़कीवह कितना निष्पाप था
बनी वहउसे दिन-रात चूमना एक औरतबार-बार गले लगानाऔरकितना बेदाग था जन्म दियाएक गुड़िया कोअब पाप में दाग गिन भी नहीं पाता!
अब फिर
गुड़िया एक लड़की है
उसे भी
बनना ही होगा औरत
फिर ……
</poem>
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