भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पुरानी तस्वीरें / मंगलेश डबराल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मंगलेश डबराल }} पुरानी तस्वीरों में ऐसा क्या है<br> जो जब ...)
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=मंगलेश डबराल
 
|रचनाकार=मंगलेश डबराल
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
पुरानी तस्वीरों में ऐसा क्या है
 +
जो जब दिख जाती हैं तो मैं गौर से देखने लगता हूँ
 +
क्या वह सिर्फ़ एक चमकीली युवावस्था है
 +
सिर पर घने बाल नाक-नक़्श कुछ कोमल
 +
जिन पर माता-पिता से पैदा होने का आभास बचा हुआ है
 +
आंखें जैसे दूर और भीतर तक देखने की उत्सुकता से भरी हुई
 +
बिना प्रेस किए कपड़े उस दौर के
 +
जब ज़िंदगी ऐसी ही सलवटों में लिपटी हुई थी
  
पुरानी तस्वीरों में ऐसा क्या है<br>
+
इस तस्वीर में मैं हूँ अपने वास्तविक रूप में
जो जब दिख जाती हैं तो मैं गौर से देखने लगता हूँ<br>
+
एक स्वप्न सरीखा चेहरे पर अपना हृदय लिए हुए
क्या वह सिर्फ़ एक चमकीली युवावस्था है<br>
+
अपने ही जैसे बेफ़िक्र दोस्तों के साथ
सिर पर घने बाल नाक-नक़्श कुछ कोमल<br>
+
एक हल्के बादल की मानिंद जो कहीं से तैरता हुआ आया है
जिन पर माता-पिता से पैदा होने का आभास बचा हुआ है<br>
+
और एक क्षण के लिए एक कोने में टिक गया है
आंखें जैसे दूर और भीतर तक देखने की उत्सुकता से भरी हुई<br>
+
कहीं कोई कठोरता नहीं कोई चतुराई नहीं
बिना प्रेस किए कपड़े उस दौर के<br>
+
आंखों में कोई लालच नहीं
जब ज़िंदगी ऐसी ही सलवटों में लिपटी हुई थी<br><br>
+
  
इस तस्वीर में मैं हूँ अपने वास्तविक रूप में<br>
+
यह तस्वीर सुबह एक नुक्कड़ पर एक ढाबे में चाय पीते समय की है
एक स्वप्न सरीखा चेहरे पर अपना हृदय लिए हुए<br>
+
उसके आसपास की दुनिया भी सरल और मासूम है
अपने ही जैसे बेफ़िक्र दोस्तों के साथ<br>
+
चाय के कप, नुक्कड़ और सुबह की ही तरह
एक हल्के बादल की मानिंद जो कहीं से तैरता हुआ आया है<br>
+
ऐसी कितने ही तस्वीरें हैं जिन्हें कभी-कभी दिखलाता भी हूँ
और एक क्षण के लिए एक कोने में टिक गया है<br>
+
घर आए मेहमानों को
कहीं कोई कठोरता नहीं कोई चतुराई नहीं<br>
+
आंखों में कोई लालच नहीं<br><br>
+
  
यह तस्वीर सुबह एक नुक्कड़ पर एक ढाबे में चाय पीते समय की है<br>
+
और अब यह क्या है कि मैं अक्सर तस्वीरें खिंचवाने से कतराता हूँ
उसके आसपास की दुनिया भी सरल और मासूम है<br>
+
खींचने वाले से अक्सर कहता हूँ रहने दो
चाय के कप, नुक्कड़ और सुबह की ही तरह<br>
+
मेरा फोटो अच्छा नहीं आता मैं सतर्क हो जाता हूँ
ऐसी कितने ही तस्वीरें हैं जिन्हें कभी-कभी दिखलाता भी हूँ<br>
+
जैसे एक आइना सामने रख दिया गया हो
घर आए मेहमानों को<br><br>
+
सोचता हूँ क्या यह कोई डर है है मैं पहले जैसा नहीं दिखूंगा
 
+
शायद मेरे चेहरे पर झलक उठेंगी इस दुनिया की कठोरताएं
और अब यह क्या है कि मैं अक्सर तस्वीरें खिंचवाने से कतराता हूँ<br>
+
और चतुराइयाँ और लालच
खींचने वाले से अक्सर कहता हूँ रहने दो<br>
+
इन दिनों हर तरफ़ ऐसी ही चीजों की तस्वीरें ज़्यादा दिखाई देती हैं
मेरा फोटो अच्छा नहीं आता मैं सतर्क हो जाता हूँ<br>
+
जिनसे लड़ने की कोशिश में
जैसे एक आइना सामने रख दिया गया हो<br>
+
सोचता हूँ क्या यह कोई डर है है मैं पहले जैसा नहीं दिखूंगा<br>
+
शायद मेरे चेहरे पर झलक उठेंगी इस दुनिया की कठोरताएं<br>
+
और चतुराइयाँ और लालच<br>
+
इन दिनों हर तरफ़ ऐसी ही चीजों की तस्वीरें ज़्यादा दिखाई देती हैं<br>
+
जिनसे लड़ने की कोशिश में<br>
+
 
मैं कभी-कभी इन पुरानी तस्वीरों को ही हथियार की तरह उठाने की सोचता हूँ
 
मैं कभी-कभी इन पुरानी तस्वीरों को ही हथियार की तरह उठाने की सोचता हूँ

09:22, 16 मई 2013 का अवतरण

पुरानी तस्वीरों में ऐसा क्या है
जो जब दिख जाती हैं तो मैं गौर से देखने लगता हूँ
क्या वह सिर्फ़ एक चमकीली युवावस्था है
सिर पर घने बाल नाक-नक़्श कुछ कोमल
जिन पर माता-पिता से पैदा होने का आभास बचा हुआ है
आंखें जैसे दूर और भीतर तक देखने की उत्सुकता से भरी हुई
बिना प्रेस किए कपड़े उस दौर के
जब ज़िंदगी ऐसी ही सलवटों में लिपटी हुई थी

इस तस्वीर में मैं हूँ अपने वास्तविक रूप में
एक स्वप्न सरीखा चेहरे पर अपना हृदय लिए हुए
अपने ही जैसे बेफ़िक्र दोस्तों के साथ
एक हल्के बादल की मानिंद जो कहीं से तैरता हुआ आया है
और एक क्षण के लिए एक कोने में टिक गया है
कहीं कोई कठोरता नहीं कोई चतुराई नहीं
आंखों में कोई लालच नहीं

यह तस्वीर सुबह एक नुक्कड़ पर एक ढाबे में चाय पीते समय की है
उसके आसपास की दुनिया भी सरल और मासूम है
चाय के कप, नुक्कड़ और सुबह की ही तरह
ऐसी कितने ही तस्वीरें हैं जिन्हें कभी-कभी दिखलाता भी हूँ
घर आए मेहमानों को

और अब यह क्या है कि मैं अक्सर तस्वीरें खिंचवाने से कतराता हूँ
खींचने वाले से अक्सर कहता हूँ रहने दो
मेरा फोटो अच्छा नहीं आता मैं सतर्क हो जाता हूँ
जैसे एक आइना सामने रख दिया गया हो
सोचता हूँ क्या यह कोई डर है है मैं पहले जैसा नहीं दिखूंगा
शायद मेरे चेहरे पर झलक उठेंगी इस दुनिया की कठोरताएं
और चतुराइयाँ और लालच
इन दिनों हर तरफ़ ऐसी ही चीजों की तस्वीरें ज़्यादा दिखाई देती हैं
जिनसे लड़ने की कोशिश में
मैं कभी-कभी इन पुरानी तस्वीरों को ही हथियार की तरह उठाने की सोचता हूँ