भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सीखो / श्रीनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीनाथ सिंह }} {{KKCatKavita}} {{KKPrasiddhRachna}} फूलो...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
{{KKPrasiddhRachna}} | {{KKPrasiddhRachna}} | ||
+ | <poem> | ||
फूलों से नित हँसना सीखो, भौंरों से नित गाना. | फूलों से नित हँसना सीखो, भौंरों से नित गाना. | ||
तरु की झुकी डालियों से नित सीखो शीश झुकाना. | तरु की झुकी डालियों से नित सीखो शीश झुकाना. |
20:33, 2 जून 2013 का अवतरण
फूलों से नित हँसना सीखो, भौंरों से नित गाना.
तरु की झुकी डालियों से नित सीखो शीश झुकाना.
सीख हवा के झोंकों से लो कोमल भाव बहाना.
दूध तथा पानी से सीखो मिलना और मिलाना.
सूरज की किरणों से सीखो जगना और जगाना.
लता और पेड़ों से सीखो सबको गले लगाना.
मछली से सीखो स्वदेश के लिए तड़पकर मरना.
पतझड़ के पेड़ों से सीखो दुख में धीरज धरना.
दीपक से सीखो जितना हो सके अँधेरा हरना.
पृथ्वी से सीखो प्राणी की सच्ची सेवा करना.
जलधारा से सीखो आगे जीवन-पथ में बढ़ना.
और धुँए से सीखो हरदम ऊँचे ही पर चढ़ना.