भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्रेमी ज़मीन से / महेश वर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश वर्मा |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> प्र...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
<poem>
 
<poem>
 
प्रेमी ज़मीन से कुछ भी उठा सकते हैं, एक बटन,
 
प्रेमी ज़मीन से कुछ भी उठा सकते हैं, एक बटन,
कंघी का टुकड़ा या चमकीली पन्नी| अचेतन में
+
कंघी का टुकड़ा या चमकीली पन्नी अचेतन में
वे इन सबके गैर पारंपरिक उपयोगों के बारे में सोचते हों|
+
वे इन सबके गैर पारंपरिक उपयोगों के बारे में सोचते हों
  
 
वे उठा सकते हैं एक टूटी हुई सीप का टुकड़ा और समुद्र
 
वे उठा सकते हैं एक टूटी हुई सीप का टुकड़ा और समुद्र
 
एक टुकड़ा उनकी उँगलियों के बीच आ जाता है उनकी उदास
 
एक टुकड़ा उनकी उँगलियों के बीच आ जाता है उनकी उदास
आँखों में हैरत से देखता|
+
आँखों में हैरत से देखता
  
 
चूड़ी का एक टुकड़ा उठाते वे वास्तव में इन्द्रधनुष
 
चूड़ी का एक टुकड़ा उठाते वे वास्तव में इन्द्रधनुष
 
का लाल रंग ज़मीन से उठा रहे थे कि आज
 
का लाल रंग ज़मीन से उठा रहे थे कि आज
दोपहर भी सर्वांग सुन्दर दिखाई पड़े आकाश का इन्द्रधनुष |
+
दोपहर भी सर्वांग सुन्दर दिखाई पड़े आकाश का इन्द्रधनुष
  
 
एक रंगीन कागज उनकी उँगलियों के बीच कभी जानवर कभी
 
एक रंगीन कागज उनकी उँगलियों के बीच कभी जानवर कभी
 
बन्दूक कभी नाव बनता, फिर कागज हो जाता किसी को मालूम नहीं
 
बन्दूक कभी नाव बनता, फिर कागज हो जाता किसी को मालूम नहीं
यह खेल ही बना रहा आकाश , जल और भविष्य इस संसार का |
+
यह खेल ही बना रहा आकाश , जल और भविष्य इस संसार का
  
 
इसी धूल से उन्हें बनाना है भविष्य के पर्वतों का शिल्प
 
इसी धूल से उन्हें बनाना है भविष्य के पर्वतों का शिल्प
धूल जो उड़ा कर देख रहे हैं हवा का रुख इतनी देर से |
+
धूल जो उड़ा कर देख रहे हैं हवा का रुख इतनी देर से
  
 
धातु का एक अमूर्त टुकड़ा ज़मीन से उठाएंगे एक रोज
 
धातु का एक अमूर्त टुकड़ा ज़मीन से उठाएंगे एक रोज
और किसी के हाथ देकर थमा देंगे सम्राट होने का अभिशाप |
+
और किसी के हाथ देकर थमा देंगे सम्राट होने का अभिशाप
 
</poem>
 
</poem>

00:31, 15 जून 2013 के समय का अवतरण

प्रेमी ज़मीन से कुछ भी उठा सकते हैं, एक बटन,
कंघी का टुकड़ा या चमकीली पन्नी । अचेतन में
वे इन सबके गैर पारंपरिक उपयोगों के बारे में सोचते हों ।

वे उठा सकते हैं एक टूटी हुई सीप का टुकड़ा और समुद्र
एक टुकड़ा उनकी उँगलियों के बीच आ जाता है उनकी उदास
आँखों में हैरत से देखता ।

चूड़ी का एक टुकड़ा उठाते वे वास्तव में इन्द्रधनुष
का लाल रंग ज़मीन से उठा रहे थे कि आज
दोपहर भी सर्वांग सुन्दर दिखाई पड़े आकाश का इन्द्रधनुष ।

एक रंगीन कागज उनकी उँगलियों के बीच कभी जानवर कभी
बन्दूक कभी नाव बनता, फिर कागज हो जाता किसी को मालूम नहीं
यह खेल ही बना रहा आकाश , जल और भविष्य इस संसार का ।

इसी धूल से उन्हें बनाना है भविष्य के पर्वतों का शिल्प
धूल जो उड़ा कर देख रहे हैं हवा का रुख इतनी देर से ।

धातु का एक अमूर्त टुकड़ा ज़मीन से उठाएंगे एक रोज
और किसी के हाथ देकर थमा देंगे सम्राट होने का अभिशाप ।