"प्रेमी ज़मीन से / महेश वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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प्रेमी ज़मीन से कुछ भी उठा सकते हैं, एक बटन, | प्रेमी ज़मीन से कुछ भी उठा सकते हैं, एक बटन, | ||
− | कंघी का टुकड़ा या चमकीली पन्नी | + | कंघी का टुकड़ा या चमकीली पन्नी । अचेतन में |
− | वे इन सबके गैर पारंपरिक उपयोगों के बारे में सोचते हों | + | वे इन सबके गैर पारंपरिक उपयोगों के बारे में सोचते हों । |
वे उठा सकते हैं एक टूटी हुई सीप का टुकड़ा और समुद्र | वे उठा सकते हैं एक टूटी हुई सीप का टुकड़ा और समुद्र | ||
एक टुकड़ा उनकी उँगलियों के बीच आ जाता है उनकी उदास | एक टुकड़ा उनकी उँगलियों के बीच आ जाता है उनकी उदास | ||
− | आँखों में हैरत से देखता | + | आँखों में हैरत से देखता । |
चूड़ी का एक टुकड़ा उठाते वे वास्तव में इन्द्रधनुष | चूड़ी का एक टुकड़ा उठाते वे वास्तव में इन्द्रधनुष | ||
का लाल रंग ज़मीन से उठा रहे थे कि आज | का लाल रंग ज़मीन से उठा रहे थे कि आज | ||
− | दोपहर भी सर्वांग सुन्दर दिखाई पड़े आकाश का इन्द्रधनुष | + | दोपहर भी सर्वांग सुन्दर दिखाई पड़े आकाश का इन्द्रधनुष । |
एक रंगीन कागज उनकी उँगलियों के बीच कभी जानवर कभी | एक रंगीन कागज उनकी उँगलियों के बीच कभी जानवर कभी | ||
बन्दूक कभी नाव बनता, फिर कागज हो जाता किसी को मालूम नहीं | बन्दूक कभी नाव बनता, फिर कागज हो जाता किसी को मालूम नहीं | ||
− | यह खेल ही बना रहा आकाश , जल और भविष्य इस संसार का | + | यह खेल ही बना रहा आकाश , जल और भविष्य इस संसार का । |
इसी धूल से उन्हें बनाना है भविष्य के पर्वतों का शिल्प | इसी धूल से उन्हें बनाना है भविष्य के पर्वतों का शिल्प | ||
− | धूल जो उड़ा कर देख रहे हैं हवा का रुख इतनी देर से | + | धूल जो उड़ा कर देख रहे हैं हवा का रुख इतनी देर से । |
धातु का एक अमूर्त टुकड़ा ज़मीन से उठाएंगे एक रोज | धातु का एक अमूर्त टुकड़ा ज़मीन से उठाएंगे एक रोज | ||
− | और किसी के हाथ देकर थमा देंगे सम्राट होने का अभिशाप | + | और किसी के हाथ देकर थमा देंगे सम्राट होने का अभिशाप । |
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00:31, 15 जून 2013 के समय का अवतरण
प्रेमी ज़मीन से कुछ भी उठा सकते हैं, एक बटन,
कंघी का टुकड़ा या चमकीली पन्नी । अचेतन में
वे इन सबके गैर पारंपरिक उपयोगों के बारे में सोचते हों ।
वे उठा सकते हैं एक टूटी हुई सीप का टुकड़ा और समुद्र
एक टुकड़ा उनकी उँगलियों के बीच आ जाता है उनकी उदास
आँखों में हैरत से देखता ।
चूड़ी का एक टुकड़ा उठाते वे वास्तव में इन्द्रधनुष
का लाल रंग ज़मीन से उठा रहे थे कि आज
दोपहर भी सर्वांग सुन्दर दिखाई पड़े आकाश का इन्द्रधनुष ।
एक रंगीन कागज उनकी उँगलियों के बीच कभी जानवर कभी
बन्दूक कभी नाव बनता, फिर कागज हो जाता किसी को मालूम नहीं
यह खेल ही बना रहा आकाश , जल और भविष्य इस संसार का ।
इसी धूल से उन्हें बनाना है भविष्य के पर्वतों का शिल्प
धूल जो उड़ा कर देख रहे हैं हवा का रुख इतनी देर से ।
धातु का एक अमूर्त टुकड़ा ज़मीन से उठाएंगे एक रोज
और किसी के हाथ देकर थमा देंगे सम्राट होने का अभिशाप ।