Changes

|रचनाकार=बालकृष्ण राव
}}
{{KKCatKavita‎}}
<poem>
मनाना चाहता है आज ही ?  
-तो मान ले
त्यौहार का दिन आज ही होगा!
त्यौहार का दिन आज ही होगा ! उमंगें यूँ अकारण ही नहीं उठतीउठतीं, न अनदेखे इशारे पर कभी यूँ नाचता मन ; खुले से लग रहे हैं द्वार मंदिर के . 
बढ़ा पग-
मूर्ति के शृंगार का दिन आज ही होगा!
मूर्ति के श्रींगार का दिन आज ही होगा ! न जाने आज क्योँ क्यों दिल चाहता है- 
स्वर मिला कर
 
अनसुने स्वर में किसी की कर उठे जयकार!
 
न जाने क्यूँ
बिना पाए हुए भी दान याचक मन,
विकल है व्यक्त करने के लिए आभार!
बिना पाए हुए भी दान याचक मन , विकल है वयक्त करने के लिए आभार !  कोई तो,कंही कहीं तो प्रेरणा का श्रोत स्रोत होगा ही- उमंगें यूँ अकारण ही नहीं उठती उठतीं, नदी में बाढ़ आई है कंही कहीं पानी गिरा होगा ! अचानक सिथिल-बंधन हो रहा है आज  मोक्ष्सान बंदी मन - किसी की तो कंही कोई भगीरथ -साधना पूरी हुई होगी, किसी भागीरथी के भूमि पर अवतार का दी आज ही होगा !
मनाना चाहता अचानक शिथिल-बंधन हो रहा है आज मोक्षासन बंदी मन -किसी की तो कहीं कोई भगीरथ-साधना पूरी हुई होगी,किसी भागीरथी के भूमि पर अवतार का दिन आज ही ? होगा!
मनाना चाहता है आज ही?
-तो मान ले
..................................त्यौहार का दिन आज ही होगा!..............................</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,151
edits