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− | पिता लम्बी मेज़ के सिरे पर बैठे काँट-छुरे से रोटी तोड़ रहे हैं। मैं उनके बगल में बैठा उनके इस कारनामे पर अचम्भित होता हूँ। माँ झीने अँधेरे में डूबती, खाली कमरे में बैठी है। उसकी साड़ी पर पिता की मौत धीरे-धीरे फैल रही है। नाना वीरान हाथों से दीवार टटोलने के बाद खूँटी पर अपनी टोपी टाँग देते हैं। नानी दबी आवाज़ से बुड़बुड़ाती है: ‘क्या बुड़ला फिर सो गया ?‘ | + | पिता लम्बी मेज़ के सिरे पर बैठे काँट-छुरे से रोटी तोड़ रहे हैं। |
+ | मैं उनके बगल में बैठा उनके इस कारनामे पर अचम्भित होता हूँ। | ||
+ | माँ झीने अँधेरे में डूबती, खाली कमरे में बैठी है। | ||
+ | उसकी साड़ी पर पिता की मौत धीरे-धीरे फैल रही है। | ||
+ | नाना वीरान हाथों से दीवार टटोलने के बाद खूँटी पर अपनी टोपी टाँग देते हैं। | ||
+ | नानी दबी आवाज़ से बुड़बुड़ाती है: ‘क्या बुड़ला फिर सो गया ?‘ | ||
− | माँ मेरी हठ के कारण सफ़ेद साड़ी बदलती है। पिता सड़क के मुड़ते ही आकाष की ओर मुड़ जाते हैं। | + | माँ मेरी हठ के कारण सफ़ेद साड़ी बदलती है। |
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20:24, 26 जून 2013 के समय का अवतरण
पिता लम्बी मेज़ के सिरे पर बैठे काँट-छुरे से रोटी तोड़ रहे हैं।
मैं उनके बगल में बैठा उनके इस कारनामे पर अचम्भित होता हूँ।
माँ झीने अँधेरे में डूबती, खाली कमरे में बैठी है।
उसकी साड़ी पर पिता की मौत धीरे-धीरे फैल रही है।
नाना वीरान हाथों से दीवार टटोलने के बाद खूँटी पर अपनी टोपी टाँग देते हैं।
नानी दबी आवाज़ से बुड़बुड़ाती है: ‘क्या बुड़ला फिर सो गया ?‘
माँ मेरी हठ के कारण सफ़ेद साड़ी बदलती है।
पिता सड़क के मुड़ते ही आकाष की ओर मुड़ जाते हैं।