लेखक: [[कन्हैयालाल नंदन]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=कन्हैयालाल नंदन]]}} {{KKCatGeet}}<poem>तेरी याद का ले के आसरा ,मैं कहाँ-कहाँ से गुज़र गया,उसे क्या सुनाता मैं दास्ताँ, वो तो आईना देख के डर गया।
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*मेरे ज़ेहन में कोई ख़्सवाब थाउसे देखना भी गुनाह थावो बिखर गया मेरे सामनेसारा गुनाह मेरे सर गया।
तेरी याद मेरे ग़म का ले के आसरा ,मैं कहाँ-कहाँ दरिया अथाह हैफ़क़त हौसले से गुज़र गया,<br>निबाह हैजो चला था साथ निबाहनेउसे क्या सुनाता मैं दास्ताँ, वो तो आईना देख के डर रास्ते में उतर गया।<br><br>
मेरे ज़ेहन मुझे स्याहियों में कोई ख़्वाब था<br>न पाओगेउसे देखना भी गुनाह था<br>मैं मिलूंगा लफ़्ज़ों की धूप मेंवो बिखर गया मेरे सामने<br>मुझे रोशनी की है जुस्तज़ूसारा गुनाह मेरे सर मैं किरन-किरन में बिखर गया।<br><br>
मेरे ग़म का दरिया अथाह है<br>फ़क़त हौसले से निबाह है<br>जो चला था साथ निबाहने<br>वो तो रास्ते में उतर गया।<br><br> मुझे स्याहियों में न पाओगे<br>मैं मिलूंगा लफ़्ज़ों की धूप में<br>मुझे रोशनी की है जुस्तज़ू<br>मैं किरन-किरन में बिखर गया।<br><br> उसे क्या सुनाता मैं दास्ताँ, वो तो आईना देख के डर गया।<br><br>