भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मुहब्बत का घर / कन्हैयालाल नंदन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
लेखक: [[कन्हैयालाल नंदन]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:कन्हैयालाल नंदन]]
+
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=कन्हैयालाल नंदन
 +
}}
 +
{{KKCatGhazal}}
 +
<poem>
 +
तेरा जहान बड़ा है,तमाम होगी जगह
 +
उसी में थोड़ी जगह मेरी मुकर्रर कर दे
  
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
+
मैं ईंट गारे वाले घर का तलबगार नहीं
 +
तू मेरे नाम मुहब्बत का एक घर कर दे।
  
तेरा जहान बड़ा है,तमाम होगी जगह<br>
+
मैं ग़म को जी के निकल आया,बच गयीं खुशियाँ
उसी में थोड़ी जगह मेरी मुकर्रर कर दे<br><br>
+
उन्हें जीने का सलीका मेरी नज़र कर दे।
  
मैं ईंट गारे वाले घर का तलबगार नहीं<br>
+
मैं कोई बात तो कह लूँ कभी करीने से
तू मेरे नाम मुहब्बत का एक घर कर दे।<br><br>
+
खुदारा! मेरे मुकद्दर में वो हुनर कर दे!
  
मैं ग़म को जी के निकल आया,बच गयीं खुशियाँ<br>
+
अपनी महफिल से यूँ न टालो मुझे
उन्हें जीने का सलीका मेरी नज़र कर दे।<br><br>
+
मैं तुम्हारा हूँ तुम तो सँभालो मुझे।
  
मैं कोई बात तो कह लूँ कभी करीने से<br>
+
जिंदगी! सब तुम्हारे भरम जी लिये
खुदारा! मेरे मुकद्दर में वो हुनर कर दे!<br><br>
+
हो सके तो भरम से निकालो मुझे।
  
अपनी महफिल से यूँ न टालो मुझे<br>
+
मोतियों के सिवा कुछ नहीं पाओगे
मैं तुम्हारा हूँ तुम तो सँभालो मुझे।<br><br>
+
जितना जी चाहो उतना खँगालो मुझे।
  
जिंदगी! सब तुम्हारे भरम जी लिये<br>
+
मैं तो एहसास की एक कंदील हूँ
हो सके तो भरम से निकालो मुझे।<br><br>
+
जब जी चाहो जला लो ,बुझा लो मुझे।
  
मोतियों के सिवा कुछ नहीं पाओगे<br>
+
जिस्म तो ख्वाब है,कल को मिट जायेगा,
जितना जी चाहो उतना खँगालो मुझे।<br><br>
+
रूह कहने लगी है,बचा लो मुझे।
  
मैं तो एहसास की एक कंदील हूँ<br>
+
फूल बनकर खिलूँगा बिखर जाऊँगा
जब जी चाहो जला लो ,बुझा लो मुझे।<br><br>
+
खुशबुओं की तरह से बसा लो मुझे।
  
जिस्म तो ख्वाब है,कल को मिट जायेगा,<br>
+
दिल से गहरा न कोई समंदर मिला
रूह कहने लगी है,बचा लो मुझे।<br><br>
+
देखना हो तो अपना बना लो मुझे।
 
+
फूल बनकर खिलूँगा बिखर जाऊँगा<br>
+
खुशबुओं की तरह से बसा लो मुझे।<br><br>
+
 
+
दिल से गहरा न कोई समंदर मिला<br>
+
देखना हो तो अपना बना लो मुझे।<br><br>
+

16:53, 4 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

तेरा जहान बड़ा है,तमाम होगी जगह
उसी में थोड़ी जगह मेरी मुकर्रर कर दे

मैं ईंट गारे वाले घर का तलबगार नहीं
तू मेरे नाम मुहब्बत का एक घर कर दे।

मैं ग़म को जी के निकल आया,बच गयीं खुशियाँ
उन्हें जीने का सलीका मेरी नज़र कर दे।

मैं कोई बात तो कह लूँ कभी करीने से
खुदारा! मेरे मुकद्दर में वो हुनर कर दे!

अपनी महफिल से यूँ न टालो मुझे
मैं तुम्हारा हूँ तुम तो सँभालो मुझे।

जिंदगी! सब तुम्हारे भरम जी लिये
हो सके तो भरम से निकालो मुझे।

मोतियों के सिवा कुछ नहीं पाओगे
जितना जी चाहो उतना खँगालो मुझे।

मैं तो एहसास की एक कंदील हूँ
जब जी चाहो जला लो ,बुझा लो मुझे।

जिस्म तो ख्वाब है,कल को मिट जायेगा,
रूह कहने लगी है,बचा लो मुझे।

फूल बनकर खिलूँगा बिखर जाऊँगा
खुशबुओं की तरह से बसा लो मुझे।

दिल से गहरा न कोई समंदर मिला
देखना हो तो अपना बना लो मुझे।