भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बारिश / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल जनविजय |संग्रह=माँ, बापू कब आएंगे }} रात भर चुप-चुप ...)
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=माँ, बापू कब आएंगे
 
|संग्रह=माँ, बापू कब आएंगे
 
}}
 
}}
 +
  
 
रात भर चुप-चुप
 
रात भर चुप-चुप

01:21, 21 अक्टूबर 2007 का अवतरण


रात भर चुप-चुप

रोती रही रात

दिन भर टिप-टिप

सिसकता रहा दिन

बिजली के तार

पेड़-पौधे और मकान

सब के सब फूट-फूट कर रोते रहे

नगर भर को आंसुओं में भिगोते रहे

रोते रहे, डुबोते रहे


(रचनाकाल : 1982)