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Kavita Kosh से
सुन मेरे साजन सुन मेरे मीता, या जीवन में क्या क्या बीता।।
सिर पाहन का बोझा लीतालीता, आगे कौन छुड़ावैगा।।
परली पार मेरा मीता खडि़या, उस मिलने का ध्यान न धरिया।।
यह संसार कागद की पुड़िया, बूँद पड़े घुल जाना है।
यह संसार कॉंट काँटे की बाड़ी, उलझ-पुलझ मरि जाना है।
यह संसार झाड़ और झॉंखरझाँखर, आग लगे बरि जाना है।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, सतगुरू नाम ठिकाना है।