भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अकाल और उसके बाद / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
|||
(4 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 7 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=नागार्जुन | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKPrasiddhRachna}} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <Poem> | ||
+ | कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास | ||
+ | कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास | ||
+ | कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त | ||
+ | कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त। | ||
− | + | दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद | |
− | + | धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद | |
− | + | चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद | |
− | + | कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद। | |
− | + | </poem> | |
− | + | रचनाकाल : 1952 | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + |
09:39, 9 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त।
दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद।
रचनाकाल : 1952