<poem>
हमनी के राति दिन दुखवा भोगत बानी
हमनी के सहेब साहेब से मिनती सुनाइबि।
हमनी के दुख भगवानओं न देखता ते,
हमनी के कबले कलेसवा उठाइबि।
खंभवा के फारी पहलाद के बंचवले।
ग्राह के मुँह से गजराज के बचवले।
धोतीं धोती जुरजोधना कै भइया छोरत रहै,
परगट होके तहां कपड़ा बढ़वले।
मरले रवनवाँ कै पलले भभिखना के,