गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
किसान (कविता) / मैथिलीशरण गुप्त
No change in size
,
05:51, 9 जुलाई 2013
खाते, खवाई, बीज ऋण से हैं रंगे रक्खे जहाँ
आता महाजन के यहाँ वह अन्न सारा अंत में
अधपेट खाकर फिर उन्हें है
कांपना
काँपना
हेमंत में
बरसा रहा है रवि अनल, भूतल तवा सा जल रहा
Sharda suman
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader,
प्रबंधक
35,142
edits