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<Poem>
खड़ी हो गई चाँपकर कंकालों की हूक 
जिसमें कानी हो गई शासन की बंदूक 
बढ़ी बधिरता दसगुनीदस गुनी, बने विनोबा मूक
धन्य-धन्य वह, धन्य वह, शासन की बंदूक 
जली ठूँठ पर बैठकर गई कोकिला कूक 
बाल न बाँका कर सकी शासन की बंदूक 
 
रचनाकाल : 1966
</poem>
रचनाकाल: 1966