कवि: [[नागार्जुन]]{{KKGlobal}}{{KKRachna[[Category:कविताएँ]]|रचनाकार=नागार्जुन  }}[[Category:नागार्जुन]]{{KKPrasiddhRachna}}{{KKCatKavita}}~*~*~*~*~*~*~*~ <Poem>खड़ी हो गई चाँपकर कंकालो कंकालों की हूक  
नभ में विपुल विराट-सी शासन की बंदूक 
 
 
उस हिटलरी गुमान पर सभी रहें है थूक 
 
जिसमें कानी हो गई शासन की बंदूक 
  बढ़ी बधिरता दसगुनीदस गुनी, बने विनोबा मूक 
धन्य-धन्य वह, धन्य वह, शासन की बंदूक 
 
 
सत्य स्वयं घायल हुआ, गई अहिंसा चूक 
 
जहाँ-तहाँ दगने लगी शासन की बंदूक 
 
 
जली ठूँठ पर बैठकर गई कोकिला कूक 
 
बाल न बाँका कर सकी शासन की बंदूक 
</poem>रचनाकाल: 1966