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"मै कवि हूँ / कुमार विश्वास" के अवतरणों में अंतर

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सम्बन्धों को अनुबन्धों को परिभाषाएँ देनी होंगी
 
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होठों के संग नयनों को कुछ भाषाएँ देनी होंगी
 
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हर विवश आँख के आँसू को
 
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यूँ ही हँस हँस पीना होगा
 
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मै कवि हूँ जब तक पीड़ा है
मै कवि हूँ जब तक पीडा है
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तब तक मुझको जीना होगा
 
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मनमोहन के आकर्षण मे भूली भटकी राधाओं की
मनमोहन के आकर्षण मे भूली भटकी राधाऒं की
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हर अभिशापित वैदेही को पथ मे मिलती बाधाओं की
 
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दे प्राण देह का मोह छुड़ाओं वाली हाड़ा रानी की
हर अभिशापित वैदेही को पथ मे मिलती बाधाऒं की
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मीराओं की आँखों से झरते गंगाजल से पानी की
 
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दे प्राण देह का मोह छुडाने वाली हाडा रानी की
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मुझको ही कथा सँजोनी है,
 
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मुझको ही व्यथा पिरोनी है
 
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स्मृतियाँ घाव भले ही दें
 
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मुझको उनको सीना होगा
 
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मै कवि हूँ जब तक पीड़ा है
मै कवि हूँ जब तक पीडा है
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तब तक मुझको जीना होगा
 
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जो सूरज को पिघलाती है व्याकुल उन साँसों को देखूँ
 
जो सूरज को पिघलाती है व्याकुल उन साँसों को देखूँ
 
 
या सतरंगी परिधानों पर मिटती इन प्यासों को देखूँ
 
या सतरंगी परिधानों पर मिटती इन प्यासों को देखूँ
 
 
देखूँ आँसू की कीमत पर मुस्कानों के सौदे होते
 
देखूँ आँसू की कीमत पर मुस्कानों के सौदे होते
 
 
या फूलों के हित औरों के पथ मे देखूँ काँटे बोते
 
या फूलों के हित औरों के पथ मे देखूँ काँटे बोते
 
 
इन द्रौपदियों के चीरों से  
 
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हर क्रौंच-वधिक के तीरों से
 
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सारा जग बच जाएगा पर  
 
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छलनी मेरा सीना होगा
 
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मै कवि हूँ जब तक पीड़ा है
मै कवि हूँ जब तक पीडा है
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तब तक मुझको जीना होगा
 
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कलरव ने सूनापन सौंपा मुझको अभाव से भाव मिले
 
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पीड़ाओं से मुस्कान मिली हँसते फूलों से घाव मिले
पीडाऒं से मुस्कान मिली हँसते फूलों से घाव मिले
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सरिताओं की मन्थर गति मे मैंने आशा का गीत सुना
 
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सरिताऒं की मन्थर गति मे मैने आशा का गीत सुना
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शैलों पर झरते मेघों में मैने जीवन-संगीत सुना
 
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पीड़ा की इस मधुशाला में
पीडा की इस मधुशाला में
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आँसू की खारी हाला में
 
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तन-मन जो आज डुबो देगा  
 
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वह ही युग का मीना होगा
 
वह ही युग का मीना होगा
 
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मै कवि हूँ जब तक पीड़ा है
मै कवि हूँ जब तक पीडा है
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तब तक मुझको जीना होगा
 
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कोई दीवाना कहता है (२००७) में प्रकाशित'''
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10:55, 13 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

सम्बन्धों को अनुबन्धों को परिभाषाएँ देनी होंगी
होठों के संग नयनों को कुछ भाषाएँ देनी होंगी
हर विवश आँख के आँसू को
यूँ ही हँस हँस पीना होगा
मै कवि हूँ जब तक पीड़ा है
तब तक मुझको जीना होगा

मनमोहन के आकर्षण मे भूली भटकी राधाओं की
हर अभिशापित वैदेही को पथ मे मिलती बाधाओं की
दे प्राण देह का मोह छुड़ाओं वाली हाड़ा रानी की
मीराओं की आँखों से झरते गंगाजल से पानी की
मुझको ही कथा सँजोनी है,
मुझको ही व्यथा पिरोनी है
स्मृतियाँ घाव भले ही दें
मुझको उनको सीना होगा
मै कवि हूँ जब तक पीड़ा है
तब तक मुझको जीना होगा

जो सूरज को पिघलाती है व्याकुल उन साँसों को देखूँ
या सतरंगी परिधानों पर मिटती इन प्यासों को देखूँ
देखूँ आँसू की कीमत पर मुस्कानों के सौदे होते
या फूलों के हित औरों के पथ मे देखूँ काँटे बोते
इन द्रौपदियों के चीरों से
हर क्रौंच-वधिक के तीरों से
सारा जग बच जाएगा पर
छलनी मेरा सीना होगा
मै कवि हूँ जब तक पीड़ा है
तब तक मुझको जीना होगा

कलरव ने सूनापन सौंपा मुझको अभाव से भाव मिले
पीड़ाओं से मुस्कान मिली हँसते फूलों से घाव मिले
सरिताओं की मन्थर गति मे मैंने आशा का गीत सुना
शैलों पर झरते मेघों में मैने जीवन-संगीत सुना
पीड़ा की इस मधुशाला में
आँसू की खारी हाला में
तन-मन जो आज डुबो देगा
वह ही युग का मीना होगा
मै कवि हूँ जब तक पीड़ा है
तब तक मुझको जीना होगा