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रिश्ते-1 / कविता वाचक्नवी

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|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
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रूठें कैसे नहीं बचे अब
 
मान मनोव्वल के रिश्ते
 
अलगे-से चुपचाप चल रहे
 
ये पल दो पल के रिश्ते
 
कभी गाँठ से बंध जाते हैं
 
कभी गाँठ बन जाते हैं
 
कब छाया कब चीरहरण, हो
 
जाते आँचल के रिश्ते
 
आते हैं सूरज बन, सूने
 
में चह-चह भर जाते हैं
 
आँज अँधेरा भरते आँखें
 
छल-छल ये छल के रिश्ते
 
कच्चे धागों के बंधन तो
 
जनम-जनम पक्के निकले
 
बड़ी रीतियाँ जुगत रचाईं
 
टूटे साँकल के रिश्ते
 
एक सफेदी की चादर ने
 
सारे रंगों को निगला
 
आज अमंगल और अपशकुन
 
कल के मंगल के रिश्ते
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