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लेखक: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=शिवमंगल सिंह सुमन]][[Category:कविताएँ]]|संग्रह=[[Category}}{{Template:शिवमंगल सिंह सुमन]]KKAnthologyDiwali}}{{KKCatKavita}}<poem>मृत्तिका का दीप तब तक जलेगा अनिमेषएक भी कण स्नेह का जब तक रहेगा शेष।
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~हाय जी भर देख लेने दो मुझेमत आँख मीचोऔर उकसाते रहो बातीन अपने हाथ खींचोप्रात जीवन का दिखा दोफिर मुझे चाहे बुझा दोयों अंधेरे में न छीनो-हाय जीवन-ज्योति के कुछ क्षीण कण अवशेष।
मृत्तिका तोड़ते हो क्यों भलाजर्जर रूई का दीप तब तक जलेगा अनिमेष<br>जीर्ण धागाएक भूल कर भी कण तो कभीमैंने न कुछ वरदान माँगास्नेह का जब तक रहेगा शेष ।<br><br>की बूँदें चुवाओजी करे जितना जलाओहाथ उर पर धर बताओक्या मिलेगा देख मेरा धूम्र कालिख वेश।
हाय जी भर देख लेने दो मुझे<br>मत आँख मीचो<br>और उकसाते रहो बाती<br>न अपने हाथ खींचो<br>प्रात जीवन का दिखा दो<br>फिर मुझे चाहे बुझा दो<br>यों अंधेरे में न छीनो-<br>हाय जीवन-ज्योति के कुछ क्षीण कण अवशेष ।<br><br> तोड़ते हो क्यों भला<br>जर्जर रूई का जीर्ण धागा<br>भूल कर भी तो कभी<br>मैंने न कुछ वरदान माँगा<br>स्नेह की बूँदें चुवाओ<br>जी करे जितना जलाओ<br>हाथ उर पर धर बताओ<br>क्या मिलेगा देख मेरा धूम्र कालिख वेश ।<br><br> शांति, शीतलता, अपरिचित<br>जलन में ही जन्म पाया<br>स्नेह आँचल के सहारे<br>ही तुम्हारे द्वार आया<br>और फिर भी मूक हो तुम<br>यदि यही तो फूँक दो तुम<br>फिर किसे निर्वाण का भय<br>जब अमर ही हो चुकेगा जलन का संदेश ।<br>संदेश।<br/poem>
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