{{KKRachna
|रचनाकार=ओम निश्चल
|संग्रह=शब्दि शब्द सक्रिय हैं/ ओम निश्चल
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<Poem>
सॉंस तुम्हाeरी साँस तुम्हारी योजनगंधा,मेघदूत-सा मन मेरा है।है ।
दूध धुले हैं पॉंव तुम्हाैरेपाँव तुम्हारे
अंग-अंग दिखती उबटन है
मेरी जन्मुकुंडली जन्मकुंडली जिसमें
लिखी हुई हर पल भटकन है
कैसे चलूँ तुम्हाटरे तुम्हारे द्वारे
तुम रतनारी,हम कजरारे,
कमलनाल-सी देह तुम्हादरीतुम्हारीदेवदारु-सा तन मेरा है।है ।
साँझ तुम्हें प्याररी प्यारी लगती है
प्रात सुहाना फूलों वाला
मुझे डँसा करता है हर पल
सूरज का रंगीन उजाला
कैसे पास तुम्हाजरे तुम्हारे आऊँ
चंचल मन कैसे बहलाऊँ
हँसी तुम्हाेरे तुम्हारे होठ लिखी हैदर्द भरा यौवन मेरा है।है ।
सुबह जगाता सूरज तुमको
सॉंझ साँझ सुला जाती पुरवाई,
मुझसे दूर खड़ी होती है
मेरी अपनी ही परछाईं
बाधाओं के बीच गुजरना
तुमसे झूठ मुझे क्याा क्या कहना
सीमाओं का साथ तुम्हारा
सैलानी जीवन मेरा है।है ।
<Poem>