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ज़िन्दगी यूं ही बीत गयी /वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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12:19, 16 अगस्त 2013
तन-मन दुखने लगा कौन अब
आशाओं का बोझ सम्हाले
सतरंगे सपनों से अब तो
अपनी
अपनी प्रीत गयी
ज़िन्दगी यूँ ही बीत गयी
<poem>
Tanvir Qazee
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