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+ | * [[शहर का शर हुआ जान का प्यासा कैसा / 'साक़ी' फ़ारुक़ी]] | ||
+ | * [[सोच में डूबा हुआ हूँ अक्स अपना देख कर / 'साक़ी' फ़ारुक़ी]] | ||
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+ | * [[वहशत दीवारों में चुनवा रक्खी है / 'साक़ी' फ़ारुक़ी]] | ||
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+ | * [[ये कौन आया शबिस्ताँ के ख़्वाब पहने हुए / 'साक़ी' फ़ारुक़ी]] | ||
+ | * [[यूँ मेरे पास से हो कर ब गुज़र जाना था / 'साक़ी' फ़ारुक़ी]] | ||
+ | * [[ज़मानों के ख़राबों में उतर कर देख लेता हूँ / 'साक़ी' फ़ारुक़ी]] | ||
+ | * [[ज़िंदा रहने के तजि़्करे हैं बहुत / 'साक़ी' फ़ारुक़ी]] | ||
+ | * [[मेरा अकेला ख़ुदा याद आ रहा है मुझे / 'साक़ी' फ़ारुक़ी]] |
10:06, 17 अगस्त 2013 के समय का अवतरण
'साक़ी' फ़ारुक़ी
जन्म | 1936 |
---|---|
जन्म स्थान | गोरखपुर |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
विविध | |
जीवन परिचय | |
'साक़ी' फ़ारुक़ी / परिचय |
ग़ज़लें
- आग हो दिल में तो आँखों में धनक पैदा हो / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- दर्द के इताब ले दोस्त उसे शुमार कर / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- एक दिन ज़ेहन में आसेब फिरेगा ऐसा / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- हमला-आवर कोई अक़ब से है / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- हरास फैल गया है ज़मीन-दानों में / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- जान प्यारी थी मगर जान से बे-ज़ारी थी / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- जो तेरे दिल में है वो बात मेरे ध्यान में है / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- ख़ामोशी छेड़ रही है कोई नौहा अपना / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- मैं खिल नहीं सका कि मुझे नम नहीं मिला / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- मैं किसी जवाज़ के हिसार में न था / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- मैं वही दश्त हमेशा का तरसने वाला / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- रात अपने ख़्वाब की कीमत का अँदाजा हुआ / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- रात ना-दीदा बलाओं के असर में हम थे / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- रेत की सूरत जाँ प्यासी थी आँख हमारी नम न हुई / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- सब कुछ न कहीं सोग मनाने में चला जाए / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- सफ़र की धूप में चेहरे सुनहरे कर लिए हम ने / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- शहर का शर हुआ जान का प्यासा कैसा / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- सोच में डूबा हुआ हूँ अक्स अपना देख कर / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- उम्र इंकार की दीवार से सर फोड़ती है / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- वही आँखों में और आँखों से पोशिदा भी रहता है / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- वहशत दीवारों में चुनवा रक्खी है / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- वो आग हूँ के नहीं चैन एक आन मुझे / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- वो सख़ी है तो किसी रोज़ बुला कर ले जाए / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- ये कौन आया शबिस्ताँ के ख़्वाब पहने हुए / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- यूँ मेरे पास से हो कर ब गुज़र जाना था / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- ज़मानों के ख़राबों में उतर कर देख लेता हूँ / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- ज़िंदा रहने के तजि़्करे हैं बहुत / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
- मेरा अकेला ख़ुदा याद आ रहा है मुझे / 'साक़ी' फ़ारुक़ी