|रचनाकार=रति सक्सेना
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
बाजार भरा है आमों से
ठसाठस भरे ठेले, दूकाने
सड़कों के किनारे के ढ़ेर
बाजार भरा है आमों से<br>आमठसाठस भरे ठेले, दूकाने<br>कहीं भी होंलपक कर दौड़ता है मनसड़कों के किनारे के ढ़ेर<br><br>खाने को
आम<br>के मौसम मेंकहीं भी हों<br>निराश रहते हैंलपक कर दौड़ता है मन<br>तमाम छोटे...मोटे खाने को<br><br>कुरूप सुरूप फल
आम के मौसम में<br>का कहना क्यानिराश रहते हैं<br>इसकी तुलना सिर्फ एक से हो सकती हैतमाम छोटे...मोटे <br>कुरूप सुरूप फल<br><br>वह है दोस्ती
दोस्ती भी आम का कहना क्या<br>की तरहइसकी तुलना सिर्फ एक से हो सकती भरभरा कर चली आती है<br>वह मुँह में स्वाद घुलने घुलने तकछूछी गुठली हाथ रह जाती है दोस्ती<br><br>
दोस्ती भी आम की तरह<br>भरभरा कर चली आती है<br>गुठली परमुँह में स्वाद घुलने घुलने तक<br>मारते हमछूछी गुठली हाथ रह जाती है<br><br>कल्पना करते हैं उन दिनों कीजब वह रसीली, गुदीली औरभरी भरी हुआ करती थी
दोस्ती की गुठली पर<br>मुँह मारते हम<br>कल्पना करते हैं उन दिनों की<br>जब वह रसीली, गुदीली और<br>भरी भरी हुआ करती थी<br><br> कभी कभी दोस्ती<br>आम की तरह ही<br>बाहर से लुभाती है<br>किन्तु<br>खाँप मुँह में रखते ही<br>बेस्वाद निकल जाती है<br>कभी कभी दोस्ती <br>बाहर से कड़ियल, बदरंग होती है<br>किन्तु हर रेशे में <br>दावत का रंग देती है<br>अक्सर होता है मेरे साथ<br>जब मैं आम को देखती हूँ<br>दोस्ती याद आती है<br>दोस्ती के चलते <br>
आम भुला जाती हूँ
</poem>