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साँचा:KKPoemOfTheWeek

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ये अनाज की पूलें तेरे काँधे झूलेंसमूहगान</div>
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रचनाकार: [[माखनलाल चतुर्वेदीशैलेन्द्र]]
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ये अनाज की पूलें तेरे काँधे झूलेंक्रान्ति के लिए जली मशालक्रान्ति के लिए उठे क़दम !तेरा चौड़ा छातारे जन-गण भूख के भ्राताविरुद्ध भात के लिएशिशिर, ग्रीष्म, वर्षा से लड़तेरात के विरुद्ध प्रात के लिएभू-स्वामी, निर्माता !मेहनती ग़रीब जाति के लिएकीचहम लड़ेंगे, धूल, गन्दगी बदन परलेकर ओ मेहनतकशहमने ली कसम !गाता फिरे विश्व में भारततेरा ही नव-श्रम-यश !तेरी एक मुस्कराहट परवीर पीढ़ियाँ फूलें ।छिन रही हैं आदमी की रोटियाँये अनाज बिक रही हैं आदमी की पूलेंबोटियाँतेरे काँधें झूलें !किन्तु सेठ भर रहे हैं कोठियाँइन भुजदंडों पर अर्पितसौ-सौ युग, सौ-सौ हिमगिरीसौ-सौ भागीरथी निछावरतेरे कोटि-कोटि शिर लूट का यह राज हो ख़तम !ये उगी बिन उगी फ़सलेंतेरी प्राण कहानीहर रोटी ने, रक्त बूँद नेतेरी छवि पहचानी !वायु तुम्हारी उज्ज्वल गाथासूर्य तुम्हारा रथ तय हैजय मजूर की,किसान कीबीहड़ काँटों भरा कीचमयएक तुम्हारा पथ है ।यह शासनदेश की, यह कलाजहान की, तपस्याअवाम कीतुझे कभी मत भूलें ।ये अनाज ख़ून से रंगे हुए निशान की पूलेंतेरे काँधे झूलें लिख रही है मार्क्स की क़लम !
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