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|रचनाकार=ख़ुमार बाराबंकवी
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<poem>
भूले है रफ़्ता-रफ़्ता उन्हे मुद्दतो में हम
किश्तो में खुदखुशी ख़ुदकुशी का मज़ा हमसे पूछिए
आग़ाज़-ए-आशिकी का मज़ा आप जानिए
अंजाम-ए-आशिकी का मज़ा हमसे पूछिए
जलते दियो में जलते घरो जैसी ज़ौ लौ कहा
सरकार रोशनी का मज़ा हमसे पूछिए