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हाइकु कविताएँ / जगदीश व्योम

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|रचनाकार=कमलेश भट्ट 'कमल'जगदीश व्योम
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कंकरीट के वन
उदास मन !
*धूप के पाँव थके अनमने से बैठे सहमे।*मरने न दोपरम्पराओं को कभीबचोगे तभी।*छिड़ा जो युद्ध रोयेगी मानवताहँसगे गिद्ध।*कुछ कम हो शायद ये कुहासायही प्रत्याशा।*मिलने भी दोराम और ईसा कोभिन्न हैं कहाँ !*बिना धुरी केघूम रही है चक्कीपिसेंगे सब।*चींटी बने हो रौंदे तो जाआगे हीरोना धोना क्यों?*सूर्य के पाँवचूमकर सो गएगाँव के गाँव।*यूँ ही न बहोपर्वत–सा ठहरोमन की कहो।*पतंग उड़ी डोर कटी‚ बिछुड़ीफिर न मिली।*बूढा. सूरज झेलेगा कब तकतम के दंश।*निगल गईसदियों का सृजनक्रोधित धरा।*मुढ़ैठा बाँधेअकड़ा खड़ा चनामाटी का बेटा।*धूप गौरैयाउतरती छज्जे सेआँगन बीच !*थका सूरजढहा देगा फिर भीतम का दुर्ग।*पीटता नभबिजली के कोढ़े सेरोता बादल !*रोज ले आतीगौरैया घास-फूसफेंक देती माँ !*साँझ होते हीबैठता आसन पेऋषि सूरज।*गंध के बोरेलाता है ढो ढोकरहवा का घोड़ा।*ओस की बूँदकैक्टस पर बैठीशूली पे सन्त !*अनाम गन्धबिखेर रही हवाधान के खेत।*हाइकु हंसहौले से हवा हुआकाँपा शैवाल।*क्यों तू उदासदूब अभी है ज़िन्दा पिक कूकेगा ।*शहरी चक्कीलोकगीत पीसनाअबाध गति।*सहम गई फुदकती गौरैयाशुभ नहीं ये।*लोक रोपतामहाकाव्य की पौधलुनता कवि।*बादल रोयाधरती भी उमगीफसल उगी।*स्वागत हुआदूब–धान आयालोक जीवन।*नदी बनातासोख हवा से नमींवृद्ध पहाड़। *छीन लेता हैधनी मेघों से जलदानी पहाड़।*रात सिसकीदूब ने सजा लिएकई हाइकु। </poem>