Changes

अजनबी शहर के / राही मासूम रज़ा

7 bytes removed, 08:37, 1 सितम्बर 2013
|रचनाकार=राही मासूम रज़ा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
अजनबी शहर के अजनबी रास्ते, मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे
मैं बहुत देर तक यूं ही चलता रहा, तुम बहुत देर तक याद आते रहे
अजनबी शहर के/में अजनबी रास्ते ज़हर मिलता रहा ज़हर पीते रहे, रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहेज़िंदगी भी हमें आज़माती रही, मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते और हम भी उसे आज़माते रहे
मैं बहुत देर तक यूं ही चलता रहाज़ख़्म जब भी कोई ज़ेह्न-ओ-दिल पे लगा, तुम बहुत देर तक याद आते ज़िंदगी की तरफ़ एक दरीचा खुलाहम भी गोया किसी साज़ के तार हैं, चोट खाते रहे गुनगुनाते रहे ।।
कल कुछ ऐसा हुआ मैं बहुत थक गया, इसलिये सुन के भी अनसुनी कर गया
इतनी यादों के भटके हुए कारवाँ, दिल के ज़ख़्मों के दर खटखटाते रहे
ज़ख्म मिलता रहा, ज़हर पीते रहे, रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे, जिंदगी भी हमें आज़माती रही, और हम भी उसे आज़माते रहे ।।  ज़ख्म जब भी कोई ज़हनो दिल पे लगा, तो जिंदगी की तरफ़ एक दरीचा खुला हम भी गोया किसी साज़ के तार है, चोट खाते रहे, गुनगुनाते रहे ।।  कल कुछ ऐसा हुआ मैं बहुत थक गया, इसलिये सुन के भी अनसुनी कर गया, इतनी यादों के भटके हुए कारवां, दिल के जख्मों के दर खटखटाते रहे ।।  सख्त सख़्त हालात के तेज़ तूफानोंमें , गिर घिर गया था हमारा जुनूने -वफ़ा हम चिराग़े-तमन्ना़ तमन्ना जलाते रहे, वो चिराग़े-तमन्ना बुझाते रहे ।।</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,137
edits