Changes

अजनबी शहर के / राही मासूम रज़ा

11 bytes added, 08:37, 1 सितम्बर 2013
|रचनाकार=राही मासूम रज़ा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
अजनबी शहर के अजनबी रास्ते, मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे
मैं बहुत देर तक यूं ही चलता रहा, तुम बहुत देर तक याद आते रहे
ज़ह्र ज़हर मिलता रहा ज़ह्र ज़हर पीते रहे, रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे
ज़िंदगी भी हमें आज़माती रही, और हम भी उसे आज़माते रहे
ज़ख़्म जब भी कोई ज़ेह्नोज़ेह्न-ओ-दिल पे लगा, ज़िंदगी की तरफ़ एक दरीचा खुला
हम भी गोया किसी साज़ के तार हैं, चोट खाते रहे गुनगुनाते रहे
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,132
edits