Changes

मँहगाई / काका हाथरसी

22 bytes removed, 05:53, 18 सितम्बर 2013
|रचनाकार=काका हाथरसी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
जन-गण मन के देवता, अब तो आँखें खोल
महँगाई से हो गया, जीवन डाँवाडोल
जीवन डाँवाडोल, ख़बर लो शीघ्र कृपालू
कलाकंद के भाव बिक रहे बैंगन-आलू
कहँ 'काका' कवि, दूध-दही को तरसे बच्चे
आठ रुपये के किलो टमाटर, वह भी कच्चे
जन - गण - मन के देवता , अब तो आँखें खोल  महँगाई से हो गया , जीवन डाँवाडोल  जीवन डाँवाडोल , ख़बर लो शीघ्र कृपालू  कलाकंद के भाव बिक रहे बैंगन - आलू  कहँ ‘ काका ' कवि , दूध - दही को तरसे बच्चे  आठ रुपये के किलो टमाटर , वह भी कच्चे    राशन की दुकान पर , देख भयंकर भीर  'क्यू ' में धक्का मारकर , पहुँच गये बलवीर  पहुँच गये बलवीर , ले लिया नंबर पहिला  खड़े रह गये निर्बल , बू ढ़े बूढ़े, बच्चे , महिला  कहँ 'काका ' कवि , करके बंद धरम का काँटा  लाला बोले - भागो , खत्म हो गया आटा</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,148
edits