{{KKGlobal}}
{{KKRachnaKKLokRachna
|रचनाकार=प्रतिभा सक्सेना
|संग्रह=सन्नाटे का छन्द / अज्ञेय
}}
{{KKLokGeetBhaashaSoochi
|भाषा=भोजपुरी
}}{{KKCatBhojpuriRachna}}
<poem>
छिंगुनिया के छल्ला पे तोहि का नचइबे ,
मोर मुँगरी का रोजै बनावत है बल्ला ,
इहाँ देउरन की न कौनो कमी
मोय भौजी बुलावत ई सारा मोहल्ला !
छप्पन छूरी इन छुकरियन में छुट्टा
तुहै छोड़, कहि देत, मइके न जइबे !
दुहू गोड़ तोड़ब घरै माँ बिठइबे !
छिंगुनियाके छल्ला पे ...!
</poem>