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साँचा:KKPoemOfTheWeek

No change in size, 03:36, 24 सितम्बर 2013
बीड़ी बाँधते-बाँधते जो दुबला आदमी क्रमश: और दुबला हो रहा है
अंजाने अनजाने में टी०बी० के कीटाणु अपने सीने की खाँचे में पाल रहा है
उस आदमी के निद्राहीन रात में
जब गले में उठता है रक्त तब उसी रक्त के धब्बों-थक्कों में
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