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उलझन / मिथिलेश श्रीवास्तव

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|रचनाकार=मिथिलेश श्रीवास्तव
|संग्रह=किसी उम्मीद की तरह / मिथिलेश श्रीवास्तव}}
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<poem>
बचपन से सुनते आए हैं हम
पिता के पुरोहित से
पिता मरणासन्न होते और वह कहता लंबी लम्बी है आपकी आयु रेखा
हम भूख से बिलबिलाते और वह कहता
पिता के हाथ से एक घर बनेगा
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