भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आओ कुछ राहत दें / दिनेश मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश मिश्र |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 12: पंक्ति 12:
 
मुश्किल से हीं नसीब ऐसी घड़ी होती है  
 
मुश्किल से हीं नसीब ऐसी घड़ी होती है  
  
दर्द से लड़ाई की काँटों से भरी उगर
+
दर्द से लड़ाई की काँटों से भरी डगर
 
एक शुरुआत करें आज रहे ध्यान मगर,
 
एक शुरुआत करें आज रहे ध्यान मगर,
 
झूठे पैगम्बर तो मौज किया करते हैं
 
झूठे पैगम्बर तो मौज किया करते हैं

13:17, 3 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

आओ कुछ राहत दें इस क्षण की पीड़ा को
क्योंकि नये युग की तो बात बड़ी होती है
अपने हैं लोग यहाँ बैठो कुछ बात करो
मुश्किल से हीं नसीब ऐसी घड़ी होती है

दर्द से लड़ाई की काँटों से भरी डगर
एक शुरुआत करें आज रहे ध्यान मगर,
झूठे पैगम्बर तो मौज किया करते हैं
ईसा के हाथों में कील गड़ी होती है

हमराही हिम्मत से बीहड़ को पार करो
आहों के सौदागर तबकों पर वार करो
जिनको हम शेर समझ डर जाया करते हैं
अक्सर तो भूसे पर ख़ाल मढ़ी होती है

संकल्पों और लक्ष्य बीच बड़ी दूरी है
मन है मजबूर मगर कैसी मज़बूरी है,
जब तक हम जीवन की गुत्थी को सुलझाएँ
अपनी अगवानी में मौत खड़ी होती है.