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|रचनाकार=कन्हैया लाल भाटी
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थूं एक दिन चाणचकै
इण घोर रिंधरोही मांय
म्हैं गुमग्यो म्हारै सूं का थारै सूं ।
म्हैं थनै हेलो पाड्तो
ओ म्हारा बेली....!पड़ूतर में....
सूनी गूंग कटार ज्यूं
घुसगी म्हारै काळजै मांय