{{KKRachna
|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा
|संग्रह=म्हारी पाँती म्हारै पांती री चितावां चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा
}}
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]{{KKCatRajasthaniRachna}}
{{KKCatKavita}}
<Poempoem>
कांई ठाह कींकर
इती खेचळ पछै ई
कांई ठाह कद
म्हारैं आंगणै
बटाऊ बावड़ जावै !
डागळै कागला
अळसीड़ै रा ढ़िगळा लाग्योड़ा है
अर बटाऊ
आंवतो ई हुवैला ! </Poempoem>