भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उतरूं ऊंडै काळजै / रवि पुरोहित" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार= रवि पुरोहित
 
|रचनाकार= रवि पुरोहित
 
}}
 
}}
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
+
{{KKCatRajasthaniRachna}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>उतरूं थांरै
+
{{KKCatKavita‎}}
 +
<poem>
 +
उतरूं थांरै
 
ऊंडै काळजै
 
ऊंडै काळजै
 
मारूं चुभ्यां
 
मारूं चुभ्यां

11:23, 17 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

उतरूं थांरै
ऊंडै काळजै
मारूं चुभ्यां
ढूंढूं
छिब म्हारी
थिर मन-जळ में ।
जित्तौ उतरूं
बित्तौ बैठूं
गहरै तळ-अतळ
दाझूं
इण री कळ-झळ में
मन सांभळूं
चींत चितारूं
देखूं-निरखूं
हियै विचारूं
कठै पज्यौ मनमौजी भंवरो
इण छळ-बळ में ।
झींझ बाजै चित्त आंगणियै
होठां घूघरा नाचै
अबै प्रगटसी,
बांथां भरसी
थूं मन जळ-निरमळ में
भूल्यौ म्हैं भावां री लहरां
करतो रैयो किलोळ
मुगती री मनगत रै धकै
उळझ्यौ इण सळ-दळ में ।
चाहै उळझूं,
चाहै सुळझूं
जाणूं निस्चै मिळसी थूं
धुन है पक्की,
मत्तौ पक्को
हुयस्यां दो सूं अेक
इणी जग-कुळ में
उतरूं
थांरै ऊंडै काळजै
मारूं चुभ्यां
ढूंढूं छिब थांरी
थांरी यादां रै जंगळ में ।