"चरखो तो ले ल्यूँ, भँवरजी, रांगलो जी / राजस्थानी" के अवतरणों में अंतर
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का बेटा हूँ । हे मेरी बहुत प्यारी नारी ! पत्नी की कमाई से काम नहीं चलता ।' | का बेटा हूँ । हे मेरी बहुत प्यारी नारी ! पत्नी की कमाई से काम नहीं चलता ।' | ||
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+ | == ''' "राजसी"''' == | ||
+ | कहाँ राम कहाँ लखन ? | ||
+ | नाम रहिया रामायण ! | ||
+ | कहाँ कृष्ण बलदेव, | ||
+ | प्रगट भागोत पुरायण !! | ||
+ | वाल्मीक शुक व्यास, | ||
+ | कथा कविता न करँता .. | ||
+ | कुण सरुप सेवता ? | ||
+ | ध्यान मन कवन धरँता ? | ||
+ | जग अमर नाम चाहो जिके, | ||
+ | सुणो सजीवन आखरा | ||
+ | "राजसी" कहे, जग राण रो ~ | ||
+ | पूजो पाँव कबीसरा !! | ||
+ | -- लावण्या |
02:24, 2 दिसम्बर 2007 का अवतरण
चरखो तो ले ल्यूँ, भँवरजी, रांगलो जी
हाँ जी ढोला, पीढ़ा लाल गुलाल
तकवो तो ले ल्यूँ जी, भँवरजी, बीजलसार को जी
ओ जी म्हारी जोड़ी रा भरतार
पूणी मंगा ल्यूँ जी क बीकानेर की जी
म्होरे म्होरे री कातूँ, भँवर जी, कूकड़ी जी
हाँ जी ढोला, रोक रुपइये रो तार
म्हे कातूँ थे बैठा विणज ल्यो जी
ओ जी म्हारी लल नणद रा ओ वीर
अब घर आओ प्यारी ने पलक न आवड़े जी
गोरी री कमाई खासी राँडिया रे
हाँ ए गोरी, कै गांधी कै मणियार
म्हे छाँ बेटा साहूकार रा जी
ए जी म्हारी घणीए प्यारी नार
गोरी री कमाई सूँ पूरा न पड़े जी
भावार्थ
--'एक रंगीला चरखा ले लूंगी मैं, ओ प्रियतम ! अजी ओ ढोला, एक लाल-गुलाल पीढ़ा ले लूंगी । उत्तम, पक्के
लोहे का, ओ प्रियतम ! मैं तकला ले लूंगी । अजी ओ, मेरी जोड़ी के भरतार ! बीकानेर से पूनियाँ मंगवा लूंगी,
एक-एक मोहर के दाम से कातूंगी एक-एक कूकड़ी (पूनी) । अजी ओ ढोला, एक-एक रुपए का होगा एक-एक
धागा । मैं कातूंगी और तुम बैठे इसका व्यवसाय करना । अजी ओ, मेरी लाल ननद के भाई! जल्दी घर आओ,
तुम्हारी प्यारी को अब पल भर भी चैन नहीं ।'
--'स्त्री की कमाई खाएगा कोई नामर्द, या कोई इत्र बेचने वाला, या कोई मनिहार, ओ रूपवती ! मैं तो साहूकार
का बेटा हूँ । हे मेरी बहुत प्यारी नारी ! पत्नी की कमाई से काम नहीं चलता ।'
"राजसी"
कहाँ राम कहाँ लखन ? नाम रहिया रामायण ! कहाँ कृष्ण बलदेव, प्रगट भागोत पुरायण !! वाल्मीक शुक व्यास, कथा कविता न करँता .. कुण सरुप सेवता ? ध्यान मन कवन धरँता ? जग अमर नाम चाहो जिके, सुणो सजीवन आखरा "राजसी" कहे, जग राण रो ~ पूजो पाँव कबीसरा !! -- लावण्या