"मृतक नायक / सुभाष काक" के अवतरणों में अंतर
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१ | १ | ||
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मैं वह नही जो दीखता हूं | मैं वह नही जो दीखता हूं | ||
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मैं स्वयं ही भूत हूं। | मैं स्वयं ही भूत हूं। | ||
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जब मैं निर्जीव हुआ | जब मैं निर्जीव हुआ | ||
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मेरी आत्मा अस्वीकृत हुई | मेरी आत्मा अस्वीकृत हुई | ||
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स्वर्ग और नरक को | स्वर्ग और नरक को | ||
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लडखडाई वापिस तब | लडखडाई वापिस तब | ||
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मेरे अस्थिपिञ्जर में। | मेरे अस्थिपिञ्जर में। | ||
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२ | २ | ||
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हम सुन्दर हैं कि हम मर जाते हैं | हम सुन्दर हैं कि हम मर जाते हैं | ||
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जब समय की उडान रुकी | जब समय की उडान रुकी | ||
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एक क्षण सहस्र वर्ष हुआ | एक क्षण सहस्र वर्ष हुआ | ||
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मैं धूल था, एक विचार था | मैं धूल था, एक विचार था | ||
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मेरी चाह थी कि शरीर होऊं | मेरी चाह थी कि शरीर होऊं | ||
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क्योंकि मैंने स्पर्श नही किया | क्योंकि मैंने स्पर्श नही किया | ||
− | |||
भरपूर नहीं | भरपूर नहीं | ||
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और जब मेरा जमा हुआ शरीर पिघला | और जब मेरा जमा हुआ शरीर पिघला | ||
− | |||
प्राणों की सरसराहट से, | प्राणों की सरसराहट से, | ||
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वह आनन्द था। | वह आनन्द था। | ||
− | |||
३ | ३ | ||
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शब्द निःस्तब्धता से निकला | शब्द निःस्तब्धता से निकला | ||
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स्वतन्त्रता कारागार हो | स्वतन्त्रता कारागार हो | ||
− | |||
पर नीरवता | पर नीरवता | ||
− | |||
नीरवता को नहीं भाती | नीरवता को नहीं भाती | ||
− | |||
हृदय के कांपने को नहीं भाती | हृदय के कांपने को नहीं भाती | ||
− | |||
पर सौन्दर्य कौन मांगता है | पर सौन्दर्य कौन मांगता है | ||
− | |||
अतः मुझे गीत गाने दो | अतः मुझे गीत गाने दो | ||
− | |||
मुझे घण्टा बजाने दो। | मुझे घण्टा बजाने दो। | ||
− | |||
४ | ४ | ||
− | |||
मैं हर दिन मृत्यु को | मैं हर दिन मृत्यु को | ||
− | |||
प्रातराश के दूध की तरह पीता हूं | प्रातराश के दूध की तरह पीता हूं | ||
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इस प्रभात को जब मैं जागा | इस प्रभात को जब मैं जागा | ||
− | |||
श्वेत धूप के धब्बे मेरे कमरे में थे | श्वेत धूप के धब्बे मेरे कमरे में थे | ||
− | |||
मैंने रात के वस्त्र पलंग के आस-पास बिखरा दिये | मैंने रात के वस्त्र पलंग के आस-पास बिखरा दिये | ||
− | |||
चौकी पर थाल | चौकी पर थाल | ||
− | |||
सुरुचिपूर्ण संजोए थे | सुरुचिपूर्ण संजोए थे | ||
− | |||
कमरे का उपस्कार | कमरे का उपस्कार | ||
− | |||
ठीक स्थान पर था | ठीक स्थान पर था | ||
− | |||
वैसे ही जैसे घर जो रुका हुआ है। | वैसे ही जैसे घर जो रुका हुआ है। | ||
− | |||
मैं प्रातराश खा न पाया। | मैं प्रातराश खा न पाया। | ||
− | |||
५ | ५ | ||
− | |||
पक्षी उड गये जब में पहुंचा | पक्षी उड गये जब में पहुंचा | ||
− | |||
मैंने दाना हाथों में बटोरा | मैंने दाना हाथों में बटोरा | ||
− | |||
मेरा पास चाकू न था | मेरा पास चाकू न था | ||
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पर पक्षी न आये | पर पक्षी न आये | ||
− | |||
मेरे हाथ थक गये और गिरते दानों से | मेरे हाथ थक गये और गिरते दानों से | ||
− | |||
पौधे निकले | पौधे निकले | ||
− | |||
और श्वेत फूल | और श्वेत फूल | ||
− | |||
कमल भरपूर। | कमल भरपूर। | ||
− | |||
६ | ६ | ||
− | |||
मुझे पीने दो | मुझे पीने दो | ||
− | |||
मुझे और पीने दो | मुझे और पीने दो | ||
− | |||
जैसे मैं झुका चीत्कार हुआ | जैसे मैं झुका चीत्कार हुआ | ||
− | |||
नेत्र उठे एक राक्षस देखा | नेत्र उठे एक राक्षस देखा | ||
− | |||
अर्धनर, अर्धनारी | अर्धनर, अर्धनारी | ||
− | |||
अपने ही वक्ष को पुचकारता हुआ | अपने ही वक्ष को पुचकारता हुआ | ||
− | |||
मैंने देखा कि नदी का पानी | मैंने देखा कि नदी का पानी | ||
− | |||
राक्षस की हचकती छाती के साथ | राक्षस की हचकती छाती के साथ | ||
− | |||
उठ बैठ रहा, | उठ बैठ रहा, | ||
− | |||
मेरे हाथ का ताल भिन्न है | मेरे हाथ का ताल भिन्न है | ||
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मैं केवल झाग उठा पाता हूं। | मैं केवल झाग उठा पाता हूं। | ||
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मुझे पीने दो | मुझे पीने दो | ||
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तो क्या यदि मांस पिघला है | तो क्या यदि मांस पिघला है | ||
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और मेरे हाथों की अस्थियां | और मेरे हाथों की अस्थियां | ||
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पकड नहीं पातीं | पकड नहीं पातीं | ||
− | |||
जो मैं देखता हूं | जो मैं देखता हूं | ||
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अन्धेरा है | अन्धेरा है | ||
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चिकित्सा प्रयोगशाला में | चिकित्सा प्रयोगशाला में | ||
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मानचित्र जैसा हूं, | मानचित्र जैसा हूं, | ||
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पर खोखला तो भरने दो। | पर खोखला तो भरने दो। | ||
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७ | ७ | ||
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अन्तिम वेनपक्षी | अन्तिम वेनपक्षी | ||
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अग्नि की ओर उडा | अग्नि की ओर उडा | ||
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जलने के लिये | जलने के लिये | ||
− | |||
राख में ढलने के लिये | राख में ढलने के लिये | ||
− | |||
उठने कि लिये | उठने कि लिये | ||
− | |||
युवा और निष्पाप। | युवा और निष्पाप। | ||
− | |||
अग्नि के समीप पहुंचा ही था | अग्नि के समीप पहुंचा ही था | ||
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आंखें बन्द अन्तिम छलांग सोचता | आंखें बन्द अन्तिम छलांग सोचता | ||
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कि किसी ने कठोरता से खींच लिया -- | कि किसी ने कठोरता से खींच लिया -- | ||
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पुनर्जन्म नहीं था यह -- | पुनर्जन्म नहीं था यह -- | ||
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एक व्यक्ति ने गला दबोचा था | एक व्यक्ति ने गला दबोचा था | ||
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दूसरे हाथ में छुरी थी उसके। | दूसरे हाथ में छुरी थी उसके। | ||
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झट दो प्रहार से | झट दो प्रहार से | ||
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उसने पंख काट दिये। | उसने पंख काट दिये। | ||
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अन्तिम वेनपक्षी | अन्तिम वेनपक्षी | ||
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अभी वहीं पडा है | अभी वहीं पडा है | ||
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अचल, भावशून्य | अचल, भावशून्य | ||
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निर्जीव | निर्जीव | ||
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पर मृत भी नहीं | पर मृत भी नहीं | ||
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प्राण आंखों में हैं | प्राण आंखों में हैं | ||
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जो धीरे हिल रही हैं | जो धीरे हिल रही हैं | ||
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आकाश की परीक्षा कर रही हैं | आकाश की परीक्षा कर रही हैं | ||
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निकट आग | निकट आग | ||
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कब की बुझ गई। | कब की बुझ गई। | ||
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८ | ८ | ||
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मैं पूरी रात सोता हूं | मैं पूरी रात सोता हूं | ||
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पर आराम नहीं | पर आराम नहीं | ||
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पूरे दिन मेरा मन | पूरे दिन मेरा मन | ||
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उदासीन है | उदासीन है | ||
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और मेरा शरीर | और मेरा शरीर | ||
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अपरिचित चाह से | अपरिचित चाह से | ||
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अन्धेरे का आकांक्षी है। | अन्धेरे का आकांक्षी है। | ||
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कल रात मैंने ठानी | कल रात मैंने ठानी | ||
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रहस्य को जानने की | रहस्य को जानने की | ||
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घडी का घण्टी लगाई | घडी का घण्टी लगाई | ||
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दो बजे की | दो बजे की | ||
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जब मैं उठा उस पहर | जब मैं उठा उस पहर | ||
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मैंने देखे पिशाच | मैंने देखे पिशाच | ||
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मंडराते हुए | मंडराते हुए | ||
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रक्त पी रहे। | रक्त पी रहे। | ||
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मेरे हाथ अशक्त थे | मेरे हाथ अशक्त थे | ||
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सिर में अन्दर | सिर में अन्दर | ||
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खटखटाहट थी | खटखटाहट थी | ||
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मैं मूर्च्छित हुआ। | मैं मूर्च्छित हुआ। | ||
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आज मैं उनींदा हूं | आज मैं उनींदा हूं | ||
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अंग पीडित हैं | अंग पीडित हैं | ||
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चाह से | चाह से | ||
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कि अन्धेरा उतर आए। | कि अन्धेरा उतर आए। | ||
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९ कीडे | ९ कीडे | ||
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मैं जंगले पे खडा | मैं जंगले पे खडा | ||
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अस्थियों को शरद् धूप में गरमा रहा | अस्थियों को शरद् धूप में गरमा रहा | ||
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मेरी पलकों पर सूर्य किरणें | मेरी पलकों पर सूर्य किरणें | ||
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लाखों बारीक गोलों में बिखरीं | लाखों बारीक गोलों में बिखरीं | ||
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और फिर चींटियां चारों ओर रेंगने लगीं। | और फिर चींटियां चारों ओर रेंगने लगीं। | ||
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वह बहती आईं | वह बहती आईं | ||
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मृत्यु की गन्ध जैसी | मृत्यु की गन्ध जैसी | ||
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और कामनाओं को खा गईं। | और कामनाओं को खा गईं। | ||
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जैसे मैं कार्यालय में बैठा प्रतीक्षित | जैसे मैं कार्यालय में बैठा प्रतीक्षित | ||
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वेश्या समान, याद कर रहा, | वेश्या समान, याद कर रहा, | ||
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कितने श्मशान घाट मैंने देखे हैं, | कितने श्मशान घाट मैंने देखे हैं, | ||
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कि वह आई। | कि वह आई। | ||
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उसके आग्रह पर | उसके आग्रह पर | ||
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अपनी समझ के विपरीत | अपनी समझ के विपरीत | ||
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मैंने उसे बाहों में समेटा। | मैंने उसे बाहों में समेटा। | ||
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जब होंठ होंठ से मिले | जब होंठ होंठ से मिले | ||
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वह पृथिवी पर ढेर हुई -- | वह पृथिवी पर ढेर हुई -- | ||
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मेरी सांस ने | मेरी सांस ने | ||
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जान ले ली -- | जान ले ली -- | ||
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मैं पुनः प्रेम नहीं करूंगा। | मैं पुनः प्रेम नहीं करूंगा। | ||
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11:14, 14 नवम्बर 2013 के समय का अवतरण
(१९७३, "मृतक नायक" नामक पुस्तक से)
१
मैं वह नही जो दीखता हूं
मैं स्वयं ही भूत हूं।
जब मैं निर्जीव हुआ
मेरी आत्मा अस्वीकृत हुई
स्वर्ग और नरक को
लडखडाई वापिस तब
मेरे अस्थिपिञ्जर में।
२
हम सुन्दर हैं कि हम मर जाते हैं
जब समय की उडान रुकी
एक क्षण सहस्र वर्ष हुआ
मैं धूल था, एक विचार था
मेरी चाह थी कि शरीर होऊं
क्योंकि मैंने स्पर्श नही किया
भरपूर नहीं
और जब मेरा जमा हुआ शरीर पिघला
प्राणों की सरसराहट से,
वह आनन्द था।
३
शब्द निःस्तब्धता से निकला
स्वतन्त्रता कारागार हो
पर नीरवता
नीरवता को नहीं भाती
हृदय के कांपने को नहीं भाती
पर सौन्दर्य कौन मांगता है
अतः मुझे गीत गाने दो
मुझे घण्टा बजाने दो।
४
मैं हर दिन मृत्यु को
प्रातराश के दूध की तरह पीता हूं
इस प्रभात को जब मैं जागा
श्वेत धूप के धब्बे मेरे कमरे में थे
मैंने रात के वस्त्र पलंग के आस-पास बिखरा दिये
चौकी पर थाल
सुरुचिपूर्ण संजोए थे
कमरे का उपस्कार
ठीक स्थान पर था
वैसे ही जैसे घर जो रुका हुआ है।
मैं प्रातराश खा न पाया।
५
पक्षी उड गये जब में पहुंचा
मैंने दाना हाथों में बटोरा
मेरा पास चाकू न था
पर पक्षी न आये
मेरे हाथ थक गये और गिरते दानों से
पौधे निकले
और श्वेत फूल
कमल भरपूर।
६
मुझे पीने दो
मुझे और पीने दो
जैसे मैं झुका चीत्कार हुआ
नेत्र उठे एक राक्षस देखा
अर्धनर, अर्धनारी
अपने ही वक्ष को पुचकारता हुआ
मैंने देखा कि नदी का पानी
राक्षस की हचकती छाती के साथ
उठ बैठ रहा,
मेरे हाथ का ताल भिन्न है
मैं केवल झाग उठा पाता हूं।
मुझे पीने दो
तो क्या यदि मांस पिघला है
और मेरे हाथों की अस्थियां
पकड नहीं पातीं
जो मैं देखता हूं
अन्धेरा है
चिकित्सा प्रयोगशाला में
मानचित्र जैसा हूं,
पर खोखला तो भरने दो।
७
अन्तिम वेनपक्षी
अग्नि की ओर उडा
जलने के लिये
राख में ढलने के लिये
उठने कि लिये
युवा और निष्पाप।
अग्नि के समीप पहुंचा ही था
आंखें बन्द अन्तिम छलांग सोचता
कि किसी ने कठोरता से खींच लिया --
पुनर्जन्म नहीं था यह --
एक व्यक्ति ने गला दबोचा था
दूसरे हाथ में छुरी थी उसके।
झट दो प्रहार से
उसने पंख काट दिये।
अन्तिम वेनपक्षी
अभी वहीं पडा है
अचल, भावशून्य
निर्जीव
पर मृत भी नहीं
प्राण आंखों में हैं
जो धीरे हिल रही हैं
आकाश की परीक्षा कर रही हैं
निकट आग
कब की बुझ गई।
८
मैं पूरी रात सोता हूं
पर आराम नहीं
पूरे दिन मेरा मन
उदासीन है
और मेरा शरीर
अपरिचित चाह से
अन्धेरे का आकांक्षी है।
कल रात मैंने ठानी
रहस्य को जानने की
घडी का घण्टी लगाई
दो बजे की
जब मैं उठा उस पहर
मैंने देखे पिशाच
मंडराते हुए
रक्त पी रहे।
मेरे हाथ अशक्त थे
सिर में अन्दर
खटखटाहट थी
मैं मूर्च्छित हुआ।
आज मैं उनींदा हूं
अंग पीडित हैं
चाह से
कि अन्धेरा उतर आए।
९ कीडे
मैं जंगले पे खडा
अस्थियों को शरद् धूप में गरमा रहा
मेरी पलकों पर सूर्य किरणें
लाखों बारीक गोलों में बिखरीं
और फिर चींटियां चारों ओर रेंगने लगीं।
वह बहती आईं
मृत्यु की गन्ध जैसी
और कामनाओं को खा गईं।
जैसे मैं कार्यालय में बैठा प्रतीक्षित
वेश्या समान, याद कर रहा,
कितने श्मशान घाट मैंने देखे हैं,
कि वह आई।
उसके आग्रह पर
अपनी समझ के विपरीत
मैंने उसे बाहों में समेटा।
जब होंठ होंठ से मिले
वह पृथिवी पर ढेर हुई --
मेरी सांस ने
जान ले ली --
मैं पुनः प्रेम नहीं करूंगा।