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मुसकाता रहा बुझते-बुझते हँसते-हँसते सर जाने दिया ।
(3)
परवा न हवा की करे कुछ भी भिड़े आके जो कीट पतंग जलाए ।जगती का अन्धेरा मिटा कर आँखों में आँख की पुतली होके समाए ।निज ज्योति से दे नवज्योति जहान को अन्त में ज्योति में ज्योति मिलाए।जलना हो जिसे वो जले मुझ-सा बुझना हो जिसे मुझ-सा बुझ जाए ।।
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