"कवि / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
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− | + | कवि अनूठे कलाम के बल से। | |
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हैं बड़ा ही कमाल कर देते। | हैं बड़ा ही कमाल कर देते। | ||
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बेधाने के लिए कलेजों को। | बेधाने के लिए कलेजों को। | ||
− | + | हैं कलेजा निकाल धार देते।। | |
− | हैं कलेजा निकाल धार | + | |
है निराली निपट अछूती जो। | है निराली निपट अछूती जो। | ||
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हैं वही सूझ काम में लाते। | हैं वही सूझ काम में लाते। | ||
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कम नहीं है कमाल कवियों में। | कम नहीं है कमाल कवियों में। | ||
− | + | है कलेजा निकाल दिखलाते॥ | |
− | है कलेजा निकाल | + | |
क्यों न दिल खींच ले उपज आला। | क्यों न दिल खींच ले उपज आला। | ||
− | + | जो कि उपजी कमाल भी कुछ ले। | |
− | जो कि उपजी कमाल भी | + | |
− | + | ||
जिन पदों में छलक रहा है रस। | जिन पदों में छलक रहा है रस। | ||
− | + | क्यों कलेजा न सुन उसे उछले।। | |
− | क्यों कलेजा न सुन उसे | + | |
भाव में डूब पा अनूठे पद। | भाव में डूब पा अनूठे पद। | ||
− | |||
जिस समय है कबिन्द जी लड़ता। | जिस समय है कबिन्द जी लड़ता। | ||
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हैं उमंगें छलाँग सी भरती। | हैं उमंगें छलाँग सी भरती। | ||
− | + | है कलेजा उछल-उछल पड़ता॥ | |
− | है कलेजा उछल उछल | + | |
तब उसे कौन है भला ऐसा। | तब उसे कौन है भला ऐसा। | ||
− | + | दिल कमल-सा खिला मिला जिस का। | |
− | दिल कमल सा खिला मिला जिस का। | + | |
− | + | ||
फूल मुँह से झड़े किसी कवि के। | फूल मुँह से झड़े किसी कवि के। | ||
− | + | है कलेजा न फूलता किसका।। | |
− | है कलेजा न फूलता | + | |
भेद उसने कौन से खोले नहीं। | भेद उसने कौन से खोले नहीं। | ||
− | |||
कौन सी बातें नहीं उसने कहीं। | कौन सी बातें नहीं उसने कहीं। | ||
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दिल नहीं उस ने टटोले कौन से। | दिल नहीं उस ने टटोले कौन से। | ||
− | + | घुस गया कवि किस कलेजे में नहीं।। | |
− | घुस गया कवि किस कलेजे में | + | |
है जहाँ कोई पहुँच पाता नहीं। | है जहाँ कोई पहुँच पाता नहीं। | ||
− | |||
वह वहाँ आसन जमा है बैठता। | वह वहाँ आसन जमा है बैठता। | ||
− | |||
सूझ-मठ में पैठ बस रस-पैंठ में। | सूझ-मठ में पैठ बस रस-पैंठ में। | ||
− | + | किस कलेजे में नहीं कवि पैठता॥ | |
− | किस कलेजे में नहीं कवि | + | |
जा रही किस का नहीं मन मोहती। | जा रही किस का नहीं मन मोहती। | ||
− | |||
हाथ में किस वह अजब माला लसी। | हाथ में किस वह अजब माला लसी। | ||
− | |||
छोड़ कवि बस कर दिखाने की कला। | छोड़ कवि बस कर दिखाने की कला। | ||
− | + | है भला किसके कलेजे में बसी।। | |
− | है भला किसके कलेजे में | + | |
रस-रसिक पागल सलोने भाव का। | रस-रसिक पागल सलोने भाव का। | ||
− | |||
कौन कवि सा है लुनाई का सगा। | कौन कवि सा है लुनाई का सगा। | ||
− | |||
लोक-हित-गजरा लगन-फूलों बना। | लोक-हित-गजरा लगन-फूलों बना। | ||
+ | है रखा किसने कलेजे से लगा॥ | ||
− | + | बाँधा सुन्दर भाव का सिर पर मुकुट। | |
− | + | ||
− | बाँधा सुन्दर भाव का सिर पर | + | |
− | + | ||
वह भलाई के लिए है अवतरा। | वह भलाई के लिए है अवतरा। | ||
− | |||
कौन कवि सा हित-कमल का है भँवर। | कौन कवि सा हित-कमल का है भँवर। | ||
− | + | प्यार से किसका कलेजा है भरा।। | |
− | प्यार से किसका कलेजा है | + | |
है रहा किस में बसंत सदा बना। | है रहा किस में बसंत सदा बना। | ||
− | |||
नित चली किस में मलय सी पौन है। | नित चली किस में मलय सी पौन है। | ||
− | |||
धार किस में सब रसों की है बही। | धार किस में सब रसों की है बही। | ||
− | + | कवि-कलेजे सा कलेजा कौन है।। | |
− | कवि-कलेजे सा कलेजा कौन | + | |
एक कवि छोड़ कौन है ऐसा। | एक कवि छोड़ कौन है ऐसा। | ||
− | |||
प्रेम में मस्त मन रहा जिस का। | प्रेम में मस्त मन रहा जिस का। | ||
− | |||
भाव में डूब बन उमड़ते लौं। | भाव में डूब बन उमड़ते लौं। | ||
− | + | है कलेजा उमड़ सका किस का॥ | |
− | है कलेजा उमड़ सका किस | + | |
फूल जिससे सदा रहा झड़ता। | फूल जिससे सदा रहा झड़ता। | ||
− | |||
मुँह वही आगे है उगल लेता। | मुँह वही आगे है उगल लेता। | ||
− | |||
क्या अजब, कवि जला भुना कोई। | क्या अजब, कवि जला भुना कोई। | ||
− | + | है कलेजा जला-जला देता।। | |
− | है कलेजा जला जला | + | |
हाथ ऊँचा सदा रहा किस का। | हाथ ऊँचा सदा रहा किस का। | ||
− | |||
हित सकल सुख सहज सहेजे में। | हित सकल सुख सहज सहेजे में। | ||
− | |||
कवि करामात कर दिखाता है। | कवि करामात कर दिखाता है। | ||
− | + | ढाल जलजल रहे कलेजे में।। | |
− | ढाल | + | |
हैं किसी के न पास रस इतने। | हैं किसी के न पास रस इतने। | ||
− | |||
है रसायन बना बचन किस का। | है रसायन बना बचन किस का। | ||
− | |||
कवि सिवा कौन लग लगा उस के। | कवि सिवा कौन लग लगा उस के। | ||
− | + | है कलेजा सुलग रहा जिस का॥ | |
− | है कलेजा सुलग रहा जिस | + | |
तो भला क्या कमाल है कवि में। | तो भला क्या कमाल है कवि में। | ||
− | |||
जो सका कर कमल न नेजे को। | जो सका कर कमल न नेजे को। | ||
− | |||
गोद में प्यार है पला जिस की। | गोद में प्यार है पला जिस की। | ||
− | + | गोद देवे न उस कलेजे को।। | |
− | गोद देवे न उस कलेजे | + | |
चाँद को छील चाँदनी को, मल। | चाँद को छील चाँदनी को, मल। | ||
− | |||
रंग दे लाल, लाल रेजे में। | रंग दे लाल, लाल रेजे में। | ||
− | |||
कवि कहा कर बदल कमल दल को। | कवि कहा कर बदल कमल दल को। | ||
− | + | छेद कर दे न छबि कलेजे में॥ | |
− | छेद कर दे न छबि कलेजे | + | |
पैठ करके प्यार जैसे पैंठ में। | पैठ करके प्यार जैसे पैंठ में। | ||
− | |||
दाम खोटी चाट का पाता रहा। | दाम खोटी चाट का पाता रहा। | ||
− | |||
जो कभी चोटी चमोटी के लगे। | जो कभी चोटी चमोटी के लगे। | ||
− | |||
कवि-कलेजा चोट खा जाता रहा। | कवि-कलेजा चोट खा जाता रहा। | ||
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12:47, 18 मार्च 2014 के समय का अवतरण
कवि अनूठे कलाम के बल से।
हैं बड़ा ही कमाल कर देते।
बेधाने के लिए कलेजों को।
हैं कलेजा निकाल धार देते।।
है निराली निपट अछूती जो।
हैं वही सूझ काम में लाते।
कम नहीं है कमाल कवियों में।
है कलेजा निकाल दिखलाते॥
क्यों न दिल खींच ले उपज आला।
जो कि उपजी कमाल भी कुछ ले।
जिन पदों में छलक रहा है रस।
क्यों कलेजा न सुन उसे उछले।।
भाव में डूब पा अनूठे पद।
जिस समय है कबिन्द जी लड़ता।
हैं उमंगें छलाँग सी भरती।
है कलेजा उछल-उछल पड़ता॥
तब उसे कौन है भला ऐसा।
दिल कमल-सा खिला मिला जिस का।
फूल मुँह से झड़े किसी कवि के।
है कलेजा न फूलता किसका।।
भेद उसने कौन से खोले नहीं।
कौन सी बातें नहीं उसने कहीं।
दिल नहीं उस ने टटोले कौन से।
घुस गया कवि किस कलेजे में नहीं।।
है जहाँ कोई पहुँच पाता नहीं।
वह वहाँ आसन जमा है बैठता।
सूझ-मठ में पैठ बस रस-पैंठ में।
किस कलेजे में नहीं कवि पैठता॥
जा रही किस का नहीं मन मोहती।
हाथ में किस वह अजब माला लसी।
छोड़ कवि बस कर दिखाने की कला।
है भला किसके कलेजे में बसी।।
रस-रसिक पागल सलोने भाव का।
कौन कवि सा है लुनाई का सगा।
लोक-हित-गजरा लगन-फूलों बना।
है रखा किसने कलेजे से लगा॥
बाँधा सुन्दर भाव का सिर पर मुकुट।
वह भलाई के लिए है अवतरा।
कौन कवि सा हित-कमल का है भँवर।
प्यार से किसका कलेजा है भरा।।
है रहा किस में बसंत सदा बना।
नित चली किस में मलय सी पौन है।
धार किस में सब रसों की है बही।
कवि-कलेजे सा कलेजा कौन है।।
एक कवि छोड़ कौन है ऐसा।
प्रेम में मस्त मन रहा जिस का।
भाव में डूब बन उमड़ते लौं।
है कलेजा उमड़ सका किस का॥
फूल जिससे सदा रहा झड़ता।
मुँह वही आगे है उगल लेता।
क्या अजब, कवि जला भुना कोई।
है कलेजा जला-जला देता।।
हाथ ऊँचा सदा रहा किस का।
हित सकल सुख सहज सहेजे में।
कवि करामात कर दिखाता है।
ढाल जलजल रहे कलेजे में।।
हैं किसी के न पास रस इतने।
है रसायन बना बचन किस का।
कवि सिवा कौन लग लगा उस के।
है कलेजा सुलग रहा जिस का॥
तो भला क्या कमाल है कवि में।
जो सका कर कमल न नेजे को।
गोद में प्यार है पला जिस की।
गोद देवे न उस कलेजे को।।
चाँद को छील चाँदनी को, मल।
रंग दे लाल, लाल रेजे में।
कवि कहा कर बदल कमल दल को।
छेद कर दे न छबि कलेजे में॥
पैठ करके प्यार जैसे पैंठ में।
दाम खोटी चाट का पाता रहा।
जो कभी चोटी चमोटी के लगे।
कवि-कलेजा चोट खा जाता रहा।