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"ललक / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर

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बीत पाते नहीं दुखों के दिन।
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कब तलक दुख सहें कुढ़ें काँखें।
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देखने के लिए सुखों के दिन।
 
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है हमारी तरस रहीं आँखें।
 
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सुख-झलक ही देख लेने के लिए।
 
सुख-झलक ही देख लेने के लिए।
 
 
आज दिन हैं रात-दिन रहते खड़े।
 
आज दिन हैं रात-दिन रहते खड़े।
 
 
बात हम अपने ललक की क्या कहें।
 
बात हम अपने ललक की क्या कहें।
 
 
डालते हैं नित पलक के पाँवड़े।
 
डालते हैं नित पलक के पाँवड़े।
 
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09:04, 20 मार्च 2014 के समय का अवतरण

बीत पाते नहीं दुखों के दिन।
कब तलक दुख सहें कुढ़ें काँखें।
देखने के लिए सुखों के दिन।
है हमारी तरस रहीं आँखें।

सुख-झलक ही देख लेने के लिए।
आज दिन हैं रात-दिन रहते खड़े।
बात हम अपने ललक की क्या कहें।
डालते हैं नित पलक के पाँवड़े।