"मेल जोल / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
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− | + | तो कहेंगे मिलाप परदे में। | |
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है बुरी मौत की हुई संगत। | है बुरी मौत की हुई संगत। | ||
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रंग बदरंग कर हमारा दे। | रंग बदरंग कर हमारा दे। | ||
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जो किसी मेल जोल की रंगत। | जो किसी मेल जोल की रंगत। | ||
लाख उनको रहें मिलाते हम। | लाख उनको रहें मिलाते हम। | ||
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हैं न बेमेल मन मिले रहते। | हैं न बेमेल मन मिले रहते। | ||
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है मुलम्मा किया हुआ जिस पर। | है मुलम्मा किया हुआ जिस पर। | ||
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मेल उस मेल को नहीं कहते। | मेल उस मेल को नहीं कहते। | ||
प्यार कहला कर किसी का प्यार क्यों। | प्यार कहला कर किसी का प्यार क्यों। | ||
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काम हित जड़ के लिए दे तेल का। | काम हित जड़ के लिए दे तेल का। | ||
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जो हमें बेमोल करता ही रहे। | जो हमें बेमोल करता ही रहे। | ||
− | + | कुछ नहीं है मोल ऐसे मेल का। | |
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मिल गये पर चाहिए फटना नहीं। | मिल गये पर चाहिए फटना नहीं। | ||
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तो परस्पर हों निछावर जो हिलें। | तो परस्पर हों निछावर जो हिलें। | ||
+ | कुछ न फल है दूध काँजी सा मिले। | ||
+ | जो मिलें तो दूध जल जैसा मिलें। | ||
− | + | एक रंगत में न रंग पाई अगर। | |
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− | एक रंगत में न | + | |
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साथ दो कलियाँ खिलीं, तो क्या खिलीं। | साथ दो कलियाँ खिलीं, तो क्या खिलीं। | ||
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जब मिलाने से नहीं मिल मन सका। | जब मिलाने से नहीं मिल मन सका। | ||
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तब मिलीं दो जातियाँ तो क्या मिलीं। | तब मिलीं दो जातियाँ तो क्या मिलीं। | ||
वह न खेला जाय जिस में हो कपट। | वह न खेला जाय जिस में हो कपट। | ||
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क्यों न कितना ही निराला खेल हो। | क्यों न कितना ही निराला खेल हो। | ||
− | + | कल् मिलते आज मिट्टी में मिले। | |
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जो न मालामाल हित से मेल हो। | जो न मालामाल हित से मेल हो। | ||
तात जल जो मिलन-लता का है। | तात जल जो मिलन-लता का है। | ||
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और है जो कि हित-कमल पाला। | और है जो कि हित-कमल पाला। | ||
− | + | मेल उस मेल को कहें कैसे। | |
− | मेल उस मेल को कहें | + | |
− | + | ||
है न जो प्यार-बेलि का थाला। | है न जो प्यार-बेलि का थाला। | ||
− | हाथ धो बैठें | + | हाथ धो बैठें धरम से किस लिए। |
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मुँह हमारे क्यों सहम करके सिलें। | मुँह हमारे क्यों सहम करके सिलें। | ||
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ला मुसीबत माल पर पामाल हो। | ला मुसीबत माल पर पामाल हो। | ||
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धूल में क्यों मेल के नाते मिलें। | धूल में क्यों मेल के नाते मिलें। | ||
क्यों मलामत हम करें उस की नहीं। | क्यों मलामत हम करें उस की नहीं। | ||
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मेल कर बेमैल जो होवे न मन। | मेल कर बेमैल जो होवे न मन। | ||
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जो हमें मेली दिये जैसा मिले। | जो हमें मेली दिये जैसा मिले। | ||
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हो फतिंगे के मिलन सा जो मिलन। | हो फतिंगे के मिलन सा जो मिलन। | ||
धूल में जाय मिल मिलन वह जो। | धूल में जाय मिल मिलन वह जो। | ||
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मसलहत का महँग मसाला हो। | मसलहत का महँग मसाला हो। | ||
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प्यार जो प्यार मतलबों का हो। | प्यार जो प्यार मतलबों का हो। | ||
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मेल जो मेल जोल वाला हो। | मेल जो मेल जोल वाला हो। | ||
है भला मेल मेल वालों का। | है भला मेल मेल वालों का। | ||
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जल गया बल गया चला बल क्या। | जल गया बल गया चला बल क्या। | ||
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एक बेमेल बेदहल लौ से। | एक बेमेल बेदहल लौ से। | ||
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मेल कर तेल को मिला फल क्या। | मेल कर तेल को मिला फल क्या। | ||
है बुरा बरबादियों का है सगा। | है बुरा बरबादियों का है सगा। | ||
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बैर जो हो प्रीति-पागों में पगा। | बैर जो हो प्रीति-पागों में पगा। | ||
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प्यार-परदे में परायापन छिपा। | प्यार-परदे में परायापन छिपा। | ||
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मैल जी का मेल रंगत में रँगा। | मैल जी का मेल रंगत में रँगा। | ||
मिल, न उसको क्यों मुसीबत की कहें। | मिल, न उसको क्यों मुसीबत की कहें। | ||
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जो मिलन लेने न देवे कल हमें। | जो मिलन लेने न देवे कल हमें। | ||
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बेतरह जो मुँह मुरौअत का मले। | बेतरह जो मुँह मुरौअत का मले। | ||
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दे गिरा जो मेल मुँह के बल हमें। | दे गिरा जो मेल मुँह के बल हमें। | ||
किस तरह से हम मिलन उसको कहें। | किस तरह से हम मिलन उसको कहें। | ||
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जो कि दो बेमेल मन का खेल हो। | जो कि दो बेमेल मन का खेल हो। | ||
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क्यों न वह होगा मलालों से भरा। | क्यों न वह होगा मलालों से भरा। | ||
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मामलों के ही लिए जो मेल हो। | मामलों के ही लिए जो मेल हो। | ||
मतलबों की मलाल की जिस पर। | मतलबों की मलाल की जिस पर। | ||
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है जमी एक एक मोटी तह। | है जमी एक एक मोटी तह। | ||
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हम उसे कह मिलन नहीं सकते। | हम उसे कह मिलन नहीं सकते। | ||
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है न वह मेल है मिलाप न वह। | है न वह मेल है मिलाप न वह। | ||
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10:52, 20 मार्च 2014 के समय का अवतरण
तो कहेंगे मिलाप परदे में।
है बुरी मौत की हुई संगत।
रंग बदरंग कर हमारा दे।
जो किसी मेल जोल की रंगत।
लाख उनको रहें मिलाते हम।
हैं न बेमेल मन मिले रहते।
है मुलम्मा किया हुआ जिस पर।
मेल उस मेल को नहीं कहते।
प्यार कहला कर किसी का प्यार क्यों।
काम हित जड़ के लिए दे तेल का।
जो हमें बेमोल करता ही रहे।
कुछ नहीं है मोल ऐसे मेल का।
मिल गये पर चाहिए फटना नहीं।
तो परस्पर हों निछावर जो हिलें।
कुछ न फल है दूध काँजी सा मिले।
जो मिलें तो दूध जल जैसा मिलें।
एक रंगत में न रंग पाई अगर।
साथ दो कलियाँ खिलीं, तो क्या खिलीं।
जब मिलाने से नहीं मिल मन सका।
तब मिलीं दो जातियाँ तो क्या मिलीं।
वह न खेला जाय जिस में हो कपट।
क्यों न कितना ही निराला खेल हो।
कल् मिलते आज मिट्टी में मिले।
जो न मालामाल हित से मेल हो।
तात जल जो मिलन-लता का है।
और है जो कि हित-कमल पाला।
मेल उस मेल को कहें कैसे।
है न जो प्यार-बेलि का थाला।
हाथ धो बैठें धरम से किस लिए।
मुँह हमारे क्यों सहम करके सिलें।
ला मुसीबत माल पर पामाल हो।
धूल में क्यों मेल के नाते मिलें।
क्यों मलामत हम करें उस की नहीं।
मेल कर बेमैल जो होवे न मन।
जो हमें मेली दिये जैसा मिले।
हो फतिंगे के मिलन सा जो मिलन।
धूल में जाय मिल मिलन वह जो।
मसलहत का महँग मसाला हो।
प्यार जो प्यार मतलबों का हो।
मेल जो मेल जोल वाला हो।
है भला मेल मेल वालों का।
जल गया बल गया चला बल क्या।
एक बेमेल बेदहल लौ से।
मेल कर तेल को मिला फल क्या।
है बुरा बरबादियों का है सगा।
बैर जो हो प्रीति-पागों में पगा।
प्यार-परदे में परायापन छिपा।
मैल जी का मेल रंगत में रँगा।
मिल, न उसको क्यों मुसीबत की कहें।
जो मिलन लेने न देवे कल हमें।
बेतरह जो मुँह मुरौअत का मले।
दे गिरा जो मेल मुँह के बल हमें।
किस तरह से हम मिलन उसको कहें।
जो कि दो बेमेल मन का खेल हो।
क्यों न वह होगा मलालों से भरा।
मामलों के ही लिए जो मेल हो।
मतलबों की मलाल की जिस पर।
है जमी एक एक मोटी तह।
हम उसे कह मिलन नहीं सकते।
है न वह मेल है मिलाप न वह।