"हमारे साधू संत / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
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− | + | और की पीर जो न जान सके। | |
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वे जती हैं न हैं बड़े ढोंगी। | वे जती हैं न हैं बड़े ढोंगी। | ||
− | |||
कान जिन के फटे न परदुख सुन। | कान जिन के फटे न परदुख सुन। | ||
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वे कभी हैं कनफटे जोगी। | वे कभी हैं कनफटे जोगी। | ||
कौन है रंग ढंग से ले सोच। | कौन है रंग ढंग से ले सोच। | ||
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संत हैं या कि संतपन के काल। | संत हैं या कि संतपन के काल। | ||
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राख तन पर मले चढ़ाये भंग। | राख तन पर मले चढ़ाये भंग। | ||
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लाल आँखें किये बढ़ाये बाल। | लाल आँखें किये बढ़ाये बाल। | ||
तब रहे धूल फाँकते तो क्या। | तब रहे धूल फाँकते तो क्या। | ||
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देह में रख जब कि दी समवा। | देह में रख जब कि दी समवा। | ||
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किस लिए आप तब कमायें वे। | किस लिए आप तब कमायें वे। | ||
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बाल को जब दिया गया कमवा। | बाल को जब दिया गया कमवा। | ||
भूल में ही हो पड़े भगवा पहन। | भूल में ही हो पड़े भगवा पहन। | ||
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जो भुलावों से नहीं अब लों भगे। | जो भुलावों से नहीं अब लों भगे। | ||
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जो सकी जी से न रंगीनी निकल। | जो सकी जी से न रंगीनी निकल। | ||
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रह सकेगा रंग न तो माथा रँगे। | रह सकेगा रंग न तो माथा रँगे। | ||
और दुनिया चिमट गई इन को। | और दुनिया चिमट गई इन को। | ||
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संत का मन का रोकना देखो। | संत का मन का रोकना देखो। | ||
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इन लँगोटी भभूत वालों का। | इन लँगोटी भभूत वालों का। | ||
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आँख में धूल झोंकना देखो। | आँख में धूल झोंकना देखो। | ||
धूल दे पाँव की टका ऐंठे। | धूल दे पाँव की टका ऐंठे। | ||
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धूतपन को भभूत दे पाले। | धूतपन को भभूत दे पाले। | ||
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धूल में संतपन मिला करके। | धूल में संतपन मिला करके। | ||
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संत क्यों धूल आँख में डाले। | संत क्यों धूल आँख में डाले। | ||
तंगियों के बुरे गढ़े में गिर। | तंगियों के बुरे गढ़े में गिर। | ||
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साधुओं का गरेरना देखो। | साधुओं का गरेरना देखो। | ||
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जो कि भरते हैं तारने का दम। | जो कि भरते हैं तारने का दम। | ||
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उन का आँखें तरेरना देखो। | उन का आँखें तरेरना देखो। | ||
घर रहे पर सुधा नहीं घर की रही। | घर रहे पर सुधा नहीं घर की रही। | ||
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अब लगे ठगने रमा करके धुईं। | अब लगे ठगने रमा करके धुईं। | ||
− | |||
बाहरी आँखें गई पहले रहीं। | बाहरी आँखें गई पहले रहीं। | ||
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भीतरी आँखें भी अब अंधी हुईं। | भीतरी आँखें भी अब अंधी हुईं। | ||
किस लिए माला हिलाते तब रहे। | किस लिए माला हिलाते तब रहे। | ||
− | |||
माल पर ही जब जमी आँखें रहीं। | माल पर ही जब जमी आँखें रहीं। | ||
− | |||
तब रहे चन्दन लगाते किस लिए। | तब रहे चन्दन लगाते किस लिए। | ||
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जब कि मुँह में लग सका चन्दन नहीं। | जब कि मुँह में लग सका चन्दन नहीं। | ||
बन गये जब संत तब तज चाहते। | बन गये जब संत तब तज चाहते। | ||
− | |||
संतपन चित को सिखाना चाहिए। | संतपन चित को सिखाना चाहिए। | ||
− | |||
जो दिखावों में फँसे अब भी रहे। | जो दिखावों में फँसे अब भी रहे। | ||
− | |||
तो न तुम को मुँह दिखाना चाहिए। | तो न तुम को मुँह दिखाना चाहिए। | ||
मान के अरमान जी में थे भरे। | मान के अरमान जी में थे भरे। | ||
− | |||
संत बनने को मरे जाते रहे। | संत बनने को मरे जाते रहे। | ||
− | |||
चाह थी लाली रहे मुँह की बनी। | चाह थी लाली रहे मुँह की बनी। | ||
− | |||
बेतरह मुँह की मगर खाते रहे। | बेतरह मुँह की मगर खाते रहे। | ||
दूसरों के लिए बिके जो हैं। | दूसरों के लिए बिके जो हैं। | ||
− | |||
वे करेंगे न झोल की बातें। | वे करेंगे न झोल की बातें। | ||
− | + | मोल कैसे नहीं घटायेंगी। | |
− | मोल | + | |
− | + | ||
संत की मोल जोल की बातें। | संत की मोल जोल की बातें। | ||
जब चिलम जगती रही तब ज्ञान की। | जब चिलम जगती रही तब ज्ञान की। | ||
− | |||
जोत न्यारी क्यों न जगती कम रहे। | जोत न्यारी क्यों न जगती कम रहे। | ||
− | |||
नाक में दम क्यों रहे दम का न तब। | नाक में दम क्यों रहे दम का न तब। | ||
− | |||
जब कि दम पर दम लगाते दम रहे। | जब कि दम पर दम लगाते दम रहे। | ||
फँस गये जब कि चाह-फंदे में। | फँस गये जब कि चाह-फंदे में। | ||
− | |||
नेह नाते रह छुड़ाते क्या। | नेह नाते रह छुड़ाते क्या। | ||
− | |||
लग गई पूँछ पिछलगों की जब। | लग गई पूँछ पिछलगों की जब। | ||
− | |||
मूँछ को तब रहे मुड़ाते क्या। | मूँछ को तब रहे मुड़ाते क्या। | ||
नाम के उन साधुओं के सामने। | नाम के उन साधुओं के सामने। | ||
− | |||
आयु जिन की दाम के पीछे चुकी। | आयु जिन की दाम के पीछे चुकी। | ||
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किस तरह से आप झुक जायें भला। | किस तरह से आप झुक जायें भला। | ||
− | |||
जब झुकाये भी नहीं गर्दन झुकी। | जब झुकाये भी नहीं गर्दन झुकी। | ||
छोड़ घर-बार किस लिए बैठे। | छोड़ घर-बार किस लिए बैठे। | ||
− | |||
दूर जी से न जो हुई ममता। | दूर जी से न जो हुई ममता। | ||
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तो रमाये भभूत क्या होगा। | तो रमाये भभूत क्या होगा। | ||
− | |||
जो रहा मन न राम में रमता। | जो रहा मन न राम में रमता। | ||
क्यों खुले भी न आँख खुल पाई। | क्यों खुले भी न आँख खुल पाई। | ||
− | |||
किस लिए चेत कर नहीं चेते। | किस लिए चेत कर नहीं चेते। | ||
− | |||
लोग क्यों संत- पंथ - पंथी हो। | लोग क्यों संत- पंथ - पंथी हो। | ||
− | |||
पाँव हैं पाप - पंथ में देते। | पाँव हैं पाप - पंथ में देते। | ||
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18:29, 23 मार्च 2014 के समय का अवतरण
और की पीर जो न जान सके।
वे जती हैं न हैं बड़े ढोंगी।
कान जिन के फटे न परदुख सुन।
वे कभी हैं कनफटे जोगी।
कौन है रंग ढंग से ले सोच।
संत हैं या कि संतपन के काल।
राख तन पर मले चढ़ाये भंग।
लाल आँखें किये बढ़ाये बाल।
तब रहे धूल फाँकते तो क्या।
देह में रख जब कि दी समवा।
किस लिए आप तब कमायें वे।
बाल को जब दिया गया कमवा।
भूल में ही हो पड़े भगवा पहन।
जो भुलावों से नहीं अब लों भगे।
जो सकी जी से न रंगीनी निकल।
रह सकेगा रंग न तो माथा रँगे।
और दुनिया चिमट गई इन को।
संत का मन का रोकना देखो।
इन लँगोटी भभूत वालों का।
आँख में धूल झोंकना देखो।
धूल दे पाँव की टका ऐंठे।
धूतपन को भभूत दे पाले।
धूल में संतपन मिला करके।
संत क्यों धूल आँख में डाले।
तंगियों के बुरे गढ़े में गिर।
साधुओं का गरेरना देखो।
जो कि भरते हैं तारने का दम।
उन का आँखें तरेरना देखो।
घर रहे पर सुधा नहीं घर की रही।
अब लगे ठगने रमा करके धुईं।
बाहरी आँखें गई पहले रहीं।
भीतरी आँखें भी अब अंधी हुईं।
किस लिए माला हिलाते तब रहे।
माल पर ही जब जमी आँखें रहीं।
तब रहे चन्दन लगाते किस लिए।
जब कि मुँह में लग सका चन्दन नहीं।
बन गये जब संत तब तज चाहते।
संतपन चित को सिखाना चाहिए।
जो दिखावों में फँसे अब भी रहे।
तो न तुम को मुँह दिखाना चाहिए।
मान के अरमान जी में थे भरे।
संत बनने को मरे जाते रहे।
चाह थी लाली रहे मुँह की बनी।
बेतरह मुँह की मगर खाते रहे।
दूसरों के लिए बिके जो हैं।
वे करेंगे न झोल की बातें।
मोल कैसे नहीं घटायेंगी।
संत की मोल जोल की बातें।
जब चिलम जगती रही तब ज्ञान की।
जोत न्यारी क्यों न जगती कम रहे।
नाक में दम क्यों रहे दम का न तब।
जब कि दम पर दम लगाते दम रहे।
फँस गये जब कि चाह-फंदे में।
नेह नाते रह छुड़ाते क्या।
लग गई पूँछ पिछलगों की जब।
मूँछ को तब रहे मुड़ाते क्या।
नाम के उन साधुओं के सामने।
आयु जिन की दाम के पीछे चुकी।
किस तरह से आप झुक जायें भला।
जब झुकाये भी नहीं गर्दन झुकी।
छोड़ घर-बार किस लिए बैठे।
दूर जी से न जो हुई ममता।
तो रमाये भभूत क्या होगा।
जो रहा मन न राम में रमता।
क्यों खुले भी न आँख खुल पाई।
किस लिए चेत कर नहीं चेते।
लोग क्यों संत- पंथ - पंथी हो।
पाँव हैं पाप - पंथ में देते।