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"नापाकपन / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर

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देख वु+ल की देवियाँ कँपने लगीं।
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देख कुल की देवियाँ कँपने लगीं।
 
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रो उठी मरजाद बेवों के छले।
 
रो उठी मरजाद बेवों के छले।
 
 
जो चली गंगा नहाने, क्यों उसे।
 
जो चली गंगा नहाने, क्यों उसे।
 
 
पाप - धारा में बहाने हम चले।
 
पाप - धारा में बहाने हम चले।
  
 
रंग बेवों का बिगड़ते देख कर।
 
रंग बेवों का बिगड़ते देख कर।
 
 
किस लिए हैं ढंग से मुँह मोड़ते।
 
किस लिए हैं ढंग से मुँह मोड़ते।
 
 
जो सुधार तीरथ बनाती गेह को।
 
जो सुधार तीरथ बनाती गेह को।
 
 
क्यों उसे हैं तीरथों में छोड़ते।
 
क्यों उसे हैं तीरथों में छोड़ते।
  
 
जोग तो वह कर सकेगी ही नहीं।
 
जोग तो वह कर सकेगी ही नहीं।
 
 
जिस किसी को भोग ही की ताक हो।
 
जिस किसी को भोग ही की ताक हो।
 
 
जो हमीं रक्खें न उस का पाकपन।
 
जो हमीं रक्खें न उस का पाकपन।
 
 
पाक तीरथ क्यों न तो नापाक हो।
 
पाक तीरथ क्यों न तो नापाक हो।
  
 
जब कि बेवा हैं गिरी ही, तो उन्हें।
 
जब कि बेवा हैं गिरी ही, तो उन्हें।
 
 
दे न देवें पाप का थैला कभी।
 
दे न देवें पाप का थैला कभी।
 
 
मस्तियों से चूर दिल के मैल से।
 
मस्तियों से चूर दिल के मैल से।
 
 
तीरथों को कर न दें मैला कभी।
 
तीरथों को कर न दें मैला कभी।
 
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19:44, 23 मार्च 2014 के समय का अवतरण

देख कुल की देवियाँ कँपने लगीं।
रो उठी मरजाद बेवों के छले।
जो चली गंगा नहाने, क्यों उसे।
पाप - धारा में बहाने हम चले।

रंग बेवों का बिगड़ते देख कर।
किस लिए हैं ढंग से मुँह मोड़ते।
जो सुधार तीरथ बनाती गेह को।
क्यों उसे हैं तीरथों में छोड़ते।

जोग तो वह कर सकेगी ही नहीं।
जिस किसी को भोग ही की ताक हो।
जो हमीं रक्खें न उस का पाकपन।
पाक तीरथ क्यों न तो नापाक हो।

जब कि बेवा हैं गिरी ही, तो उन्हें।
दे न देवें पाप का थैला कभी।
मस्तियों से चूर दिल के मैल से।
तीरथों को कर न दें मैला कभी।