"बेजोड़ ब्याह / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
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− | + | बंस में घुन लगा दिया उसने। | |
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औ नई पौधा की कमर तोड़ी। | औ नई पौधा की कमर तोड़ी। | ||
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जाति को है तबाह कर देती। | जाति को है तबाह कर देती। | ||
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एक बेजोड़ ब्याह की जोड़ी। | एक बेजोड़ ब्याह की जोड़ी। | ||
जो कली है खिल रही उसके लिए। | जो कली है खिल रही उसके लिए। | ||
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बर पके, सूखे फलों जैसा न हो। | बर पके, सूखे फलों जैसा न हो। | ||
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दो दिलों में जाय जिस से गाँठ पड़। | दो दिलों में जाय जिस से गाँठ पड़। | ||
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भूल गँठजोड़ कभी ऐसा न हो। | भूल गँठजोड़ कभी ऐसा न हो। | ||
है उसे चाह रँगरलियों की। | है उसे चाह रँगरलियों की। | ||
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हैं इसे उलझनें नहीं थोड़ी। | हैं इसे उलझनें नहीं थोड़ी। | ||
− | + | क्यों न जाती उधेड़बुन में पड़। | |
− | क्यों न जाती | + | एक अल्हड़ अधेड़ की जोड़ी। |
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− | एक अल्हड़ | + | |
आह ! घन देह में लगा देगी। | आह ! घन देह में लगा देगी। | ||
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औ बनायेगी बाघ को गोरू। | औ बनायेगी बाघ को गोरू। | ||
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आठ दस साल के जमूरे की। | आठ दस साल के जमूरे की। | ||
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बीस बाईस साल की जोरू। | बीस बाईस साल की जोरू। | ||
है समय पर फूलना फलना भला। | है समय पर फूलना फलना भला। | ||
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बात कोई है न असमय की भली। | बात कोई है न असमय की भली। | ||
− | + | अधखिले सब फूल ही हैं अधखिले। | |
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हैं सभी कच्ची कली कच्ची कली। | हैं सभी कच्ची कली कच्ची कली। | ||
− | आह ! बचपन से पली जो गोद में। | + | आह! बचपन से पली जो गोद में। |
− | + | वह बिना ही आग सब दिन क्यों जले। | |
− | वह बिना ही आग सब दिन | + | |
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जो कि जगने जोग बच्चे के हुई। | जो कि जगने जोग बच्चे के हुई। | ||
− | + | बाँध दें उस को न बच्चे के गले। | |
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पाप को लोग भाँप लेते हैं। | पाप को लोग भाँप लेते हैं। | ||
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पत रहेगी कभी न पत खोये। | पत रहेगी कभी न पत खोये। | ||
+ | बेटियाँ ब्याह दूधपीते से। | ||
+ | बन सकेंगे न दूध के धोये। | ||
− | + | मिल सकेगा सुख न वह धन धाम से। | |
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− | मिल सकेगा सुख न वह | + | |
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दुख न मेटेंगी मुहर की पेटियाँ। | दुख न मेटेंगी मुहर की पेटियाँ। | ||
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तज सयानप कमसिनों से किस लिए। | तज सयानप कमसिनों से किस लिए। | ||
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ब्याह हम देवें सयानी बेटियाँ। | ब्याह हम देवें सयानी बेटियाँ। | ||
है बड़ी बात ही बड़ा करती। | है बड़ी बात ही बड़ा करती। | ||
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चाहिए सूझ बूझ बड़कों को। | चाहिए सूझ बूझ बड़कों को। | ||
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हो सयाने करें लड़कपन क्यों। | हो सयाने करें लड़कपन क्यों। | ||
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लड़कियाँ दें कभी न लड़कों को। | लड़कियाँ दें कभी न लड़कों को। | ||
लोग बेढंग बेसमझ हम से। | लोग बेढंग बेसमझ हम से। | ||
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मिल सकेंगे कहीं न ढूँढ़े से। | मिल सकेंगे कहीं न ढूँढ़े से। | ||
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आप ही हम तबाह होते हैं। | आप ही हम तबाह होते हैं। | ||
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बेटियाँ ब्याह ब्याह बूढ़े से। | बेटियाँ ब्याह ब्याह बूढ़े से। | ||
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19:51, 23 मार्च 2014 के समय का अवतरण
बंस में घुन लगा दिया उसने।
औ नई पौधा की कमर तोड़ी।
जाति को है तबाह कर देती।
एक बेजोड़ ब्याह की जोड़ी।
जो कली है खिल रही उसके लिए।
बर पके, सूखे फलों जैसा न हो।
दो दिलों में जाय जिस से गाँठ पड़।
भूल गँठजोड़ कभी ऐसा न हो।
है उसे चाह रँगरलियों की।
हैं इसे उलझनें नहीं थोड़ी।
क्यों न जाती उधेड़बुन में पड़।
एक अल्हड़ अधेड़ की जोड़ी।
आह ! घन देह में लगा देगी।
औ बनायेगी बाघ को गोरू।
आठ दस साल के जमूरे की।
बीस बाईस साल की जोरू।
है समय पर फूलना फलना भला।
बात कोई है न असमय की भली।
अधखिले सब फूल ही हैं अधखिले।
हैं सभी कच्ची कली कच्ची कली।
आह! बचपन से पली जो गोद में।
वह बिना ही आग सब दिन क्यों जले।
जो कि जगने जोग बच्चे के हुई।
बाँध दें उस को न बच्चे के गले।
पाप को लोग भाँप लेते हैं।
पत रहेगी कभी न पत खोये।
बेटियाँ ब्याह दूधपीते से।
बन सकेंगे न दूध के धोये।
मिल सकेगा सुख न वह धन धाम से।
दुख न मेटेंगी मुहर की पेटियाँ।
तज सयानप कमसिनों से किस लिए।
ब्याह हम देवें सयानी बेटियाँ।
है बड़ी बात ही बड़ा करती।
चाहिए सूझ बूझ बड़कों को।
हो सयाने करें लड़कपन क्यों।
लड़कियाँ दें कभी न लड़कों को।
लोग बेढंग बेसमझ हम से।
मिल सकेंगे कहीं न ढूँढ़े से।
आप ही हम तबाह होते हैं।
बेटियाँ ब्याह ब्याह बूढ़े से।