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"ॐ जय जगदीश हरे / आरती" के अवतरणों में अंतर

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सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ॥<br><br>
 
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तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी ॥<br><br>
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तुम बिन और न दूजा, आस करूँ मैं जिसकी ॥<br><br>
  
 
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तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति ।<br>
 
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति ।<br>
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति ॥<br><br>
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किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति ॥<br><br>
  
 
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे ।<br>
 
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे ।<br>

00:49, 2 दिसम्बर 2007 का अवतरण

रचनाकार:                  

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥

जो ध्यावे फल पावे, दुख बिनसे मन का ।
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ॥

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी ।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ मैं जिसकी ॥

तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी ।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी ॥

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता ।
मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता ॥

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति ॥

दीनबंधु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे ।
करुणा हस्त बढ़ाओ, द्वार पड़ा तेरे ॥

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा ।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा ॥