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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=सुदर्शन फ़ाकिर]][[Category:कविताएँ]]}} [[Category:गज़ल]]{{KKCatGhazal}}[[Category: सुदर्शन फ़ाकिर]]<poem>आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंज़र क्यूँ है ज़ख़्म हर सर पे हर इक हाथ में पत्थर क्यूँ है
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~जब हक़ीक़त है के हर ज़र्रे में तू रहता है फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदिर क्यूँ है
आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंज़र क्यूँ अपना अंजाम तो मालूम है <br>सब को फिर भी ज़ख़्म अपनी नज़रों में हर सर पे हर इक हाथ में पत्थर इन्सान सिकंदर क्यूँ है <br><br>
जब हक़ीक़त है के हर ज़र्रे में तू रहता है <br>फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदिर क्यूँ है <br><br> अपना अंजाम तो मालूम है सब को फिर भी <br>अपनी नज़रों में हर इन्सान सिकंदर क्यूँ है <br><br> ज़िन्दगी जीने के क़ाबिल ही नहीं अब "फ़ाकिर" <br>वर्ना हर आँख में अश्कों का समंदर क्यूँ है <br><br/poem>
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