भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पृथ्वी अनुभव / पुष्पिता" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुष्पिता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

10:18, 26 मई 2014 के समय का अवतरण

नदी को
नदी की तरह सुनो
सुनाई देगी नदी
अपनी अंतरंग आवाज की तरह।

चाँद को
चाँद की तरह देखो
दिखाई देगी चाँदनी
अपनी आँख की तरह।

धरती को
धरती की तरह अनुभव करो
महसूस होगी पृथ्वी
अपनी तृप्ति की तरह।

प्रकृति को
प्रकृति की तरह स्पर्श करो
तुममें उतर जायेगी प्रकृति
प्रेम सुख की तरह।